गांधीवादी विचारक के सामाजिक जीवन को नमन
देश के विभिन्न नदियों के नाम पर
कंसोर्टियम का गठन कर पर्यावरण संरक्षण व संवद्र्यन के लिए पर्यावरण के क्षेत्र
में अभिरूचि रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से निरंतर काम करने वाले
पर्यावरणविद् सह गांधीवादी विचारक कुमार कलानंद मणि 10
जनवरी 2015 को अपने संघर्षरत जीवन
के 60 साल पूरा करेंगे। इस साठ साल के जीवन में
45 साल के जीवन को एक सच्चे सामाजिक
कार्यकर्ता और विचार से गांधीवादी की जिंदगी जीने का एक छोटा-सा सफल प्रयास किया
है। देश की नदियों के संग हो रही छेड़छाड़ व प्रदुषण के न केवल खिलाफ करते रहे हैं
बल्कि पश्चिम घाट बचाओ आंदोलन के बैनर तले अनकों राष्ट्र व्यापी आंदोलन कर नदी को
प्रदूषित करने वाले कल-कारखाना व उद्योगपतियों के समक्ष चुनौती पेश किया है।
बिहार की नदियों में कोशी,गंडक,बागमती,सोन
आदि नदियों के संवद्र्यान के लिए कोशी कंसोर्टियम वरदान साबित हुई है। देश के 22
राज्यों में स्वराज संगठन के माध्यम से सामाजिक कार्यकर्ताओं की एकजुटता के कारण
ही आज राजनीतिक दल और सरकार आज नदियों की ंिचंता कर रही है। नदियों के प्रति
सरकारी चिंता व नीति के प्रति मतभेद जरूर है। आखिरकार यह चिंता युवा पर्यावरणविद्
सह गांधीवादी प्रणेता कुमार कलानंद मणि और उनके संगठन का ही परिणाम है। केन्द्र की
अटल बिहारी सरकार से लेकर नरेन्द्र मोदी सरकार भी गंगा नदियों के प्रति जो उदारपन
दिखला रही है उसमें कहीं न कहीं पश्चिम घाट बचाओ आंदोलन और देश के विभिन्न नदियों
की संरक्षण,संवद्र्यन व स्वच्छता के
लिए निरंतर कार्य कर रही कंसोर्टियम भी एक कड़ी है। भले ही उन्हें सरकारी पुरस्कार
न मिला हो,परंतु पूरे देश में जो
समर्पित युवा इन मद्दों पर संघर्षशील है यही उनका पुरस्कार है।
श्री मणि देश के चर्चित पर्यावरिणविदों और
अपने सहकर्मियों के साथ हिमालय यात्रा से लेकर खुद भी बिहार क्षेत्र की गंगा,
कोशी गंडक बागमती सोन
आदि नदी क्षेत्रों में पद यात्रा कर उसके दुःख दर्द को करीब से अध्ययन भी किया है।
इनके साथ कोशी कंसोर्टियम के समन्वयक भगवानजी पाठक भी कई आंदोलन व पदयात्रा में
शामिल होकर सामाजिक शक्ति प्रदान करने का काम किया है। बिहार व कोशी में भगवानजी
पाठक नदी व तटबंध पर मुकम्मल काम करने वाले सबसे कर्मठ कार्यकर्ता हैं। इन्हें भी
कई नदियों के बारे में गहन अध्ययन है। आज जो भी ये कर बिहार में नदियों के संरक्षण
व संवद्र्यन के लिए कर रहे हैं वह श्रीमणि ही उनके प्रेरणा स्त्रोत हैं।
यह सहज आश्चर्य की बात है कि 60
साल के जीवन में महज 15
साल की उम्र से ही सामाजिक जीवन को चुनौती पूर्ण ढंग से अंगीकार कर लेना किसी
असाधारण व्यक्तित्व की बात नहीं है। यह भी एक सच्चाई है कि ये जेपी आंदोलन से
जुड़कर बिहार के कस्बा से चलकर देश का दूसरा किनारा गोवा को अपना कर्मभूमि बनाया।
लेकिन कर्मभूमि के रूप में गोवा जरूर केन्द्रित रही है,लेकिन
आत्मिक व मानसिक रूप से बिहार के नदी क्षेत्रों में जितना कार्य व नदी वासियों के
बीच जागरूकता का कार्य इनके द्वारा की गयी है उसका गवाह इतिहास होगा। बिहार के
खासकर कोशी क्षेत्र में हरेक साल आने वाली बाढ त्रासदी को भले ही देश 18
अगस्त 2008 को राष्ट्रीय आपदा के
बाद जानी है। लेकिन श्री मणि बाढ, विस्थापन
व पुनर्वास सहित तटबंध के सवाल पर लगातार आवाज बुलंद करते रहे हैं। नतीजा वर्ष 2008
को जब प्रलंयकारी बाढ आई तो सरकार केी आंखें खुली और कोशी क्षेत्र की बाढ
राष्ट्रीय आपदा घोषित हुई और पीडि़तों को तत्काल लाभ मिला।
कोशी नदी पर हाईडैम निर्माण का भी ये
विरोध करते हैं और करते रहेंगे। कोशी नदी पर हाईडैम निर्माण से होने वाली संभावित
खतरों के प्रति भी ये अपने संगठन व समर्थकों के माध्यम से न केवल विरोध करते हैं
बल्कि प्रभावित होने वाले नेपाल व बिहार के गांव वासियों के बीच भी जागरूकता जैसे
कार्यक्रमों को अंजाम दिया जाता रहा है। अंत में हम उनके दीर्घायु व सुस्वस्थ जीवन
की कामना करते हैं।
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