Friday, August 18, 2017

हमला चाहे जैसा हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा, नहीं उठेगा


हमला चाहे जैसा हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा, नहीं उठेगा

कष्ट चाहे जितनी हो, विचार हमारी नहीं मरेगी, आह हम नहीं भरेंगे...  
हां, चंदेश्वर ने उन शख्सियतों से इतना कुछ जरूर सीखा कि तहेदिल से कहता है कि आज भी गांधी, जयप्रकाश व बिनोबा के नाम पर कोई कार्यक्रम होता है तो अपने तनख्वाह से 500-1000 अधिक की राशि सहयोग करने की ताकत रखता हूं...
संजय सोनी/सहरसा: लोकनायक जयप्रकाश नारायण, बिनोवा भावे, शिवराज ढढा, दादा धर्माधिकारी, ठाकुर दास बंग, आचार्य राममूर्ति शरीखे लोगों के खिदमतगार रहे चंदेश्वर आज भी वैचारिक रूप से जितना मजबूत है आर्थिक रूप से उतना ही कमजोर पड़ गया है। आप सबों को लगता होगा कि आखिर ये कौन है चंदेश्वर?
70 वर्षीय वृद्ध चंदेश्वर महतो राजधानी पटना के कदमकुंआ क्षेत्र के कांग्रेस मैदान अवस्थित “बिहार स्टेट गांधी स्मारक निधि” पटना के आर्डरली पद पर कार्यरत और गया जिले के अतरी थाना क्षेत्र के गांव शेवतर का रहने वाला है। संस्था की तरफ से आज भी तनख्वा के रूप में महज 3 हजार रूपये ही किसी तरह मिलता है। जब चंदेश्वर 1962 में संस्था ज्वाईन किया था तो उस वक्त भी मात्र 40 रूपये महीना ही पगार के तौर पर दिया जाता था। श्री चंदेश्वर संस्था में पेट भरने नहीं बल्कि परिवर्तन की वैचारिक क्रांति से अभिभूत होकर इस लालच में कि कम से कम लोकनायक जयप्रकाश नारायण, बिनोवा भावे, शिवराज ढढा, दादा धर्माधिकारी, ठाकुर दास बंग, आचार्य राममूर्ति जैसे शख्सियतों से तो कुछ तो सीखने को मिलेगा। हां, चंदेश्वर ने उन शख्सियतों से इतना कुछ जरूर सीखा कि तहेदिल से कहता है कि आज भी गांधी, जयप्रकाश व बिनोबा के नाम पर कोई कार्यक्रम होता है तो अपने तनख्वाह से 500-1000 अधिक की राशि सहयोग करने की ताकत रखता हूं। उन्होंने एक जबर्दश्त बात यह कही कि मुझे अब तक समझ में नहीं आया कि आखिर सर्वोदय किसे कहते हैं। मेरी समझ में सर्वोदय कर मतलब सबों का उदय। लेकिन यहां तो सिर्फ व्यक्ति का ही उदय होता रहा है। उन्होंने कहा की आज भी सबों का एकसाथ उदय चाहने वाले व्यक्ति की जरुरत है। उन्होंने लोकनायक के साथ अपनी सेवा क्षण को याद करते हुए बोला कि जब जेपी सख्त बीमार थे तो मुझे शरीर दबाने का दायित्व सौंपा गया और बोला गया की जब गहरी नींद आ जाय तो छोड़ देना। लेकिन ऐसा मौका आते ही खुद कराह कर बोलते थे कि जरा इधर। जब उनकी इस कष्ट को मैने शरीर दबाकर महसूस किया तो औरों से कहा कि मुझे नदी में पानी डंगाने का काम मंजूर है पर, जेपी का कष्ट देखना मंजूर नहीं है। उनकी व्यथा देखकर मुझे लगा कि ईश्वर को इन्हें अब धरती पर नहीं रखना चाहिए। लेकिन सत्तालोपियों का कुनबा सिर्फ यही चाहते रहे कि जेपी बीमार हालत में भी रहे तो मेरा काम बन जाएगा। कहने का मतलब श्री चंदेश्वर ने स्पष्ट कहा कि जेपी के विचारों का सौदा करने वाले उस वक्त भी थे और आज भी है। तो भला इस गांधी स्मार निधि व उसके कर्मचारियों को कौन देखने वाला है।   

वे यह भी बोलते हैं कि 1974 के आंदोलन में “बिहार स्टेट गांधी स्मारक निधि” छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का मुख्य केन्द्र रहा है और यहां उन सबों के आलावा अमरनाथ भाई, कर्पूरी ठाकुर, नीतीश कुमार, लालू यादव, रामबलिास पासवान, सुशील कुमार मोदी, बिनोदा नंद झा, शिवानंद तिवारी जैसे लोगों का यह संस्था एक तरह से प्रशिक्षण केन्द्र रहा है। फिर भी इस संस्थान की खराब हालत पर कोई ध्यान नहीं देता है। उन्होंने कहा कि इमेरजेंसी में इस संस्थान में पंछी तक रहना पसंद नहीं करता था तो भी चंदेश्वर ही रहा करता था। श्री चंदेश्वर ने बोला कि “हमला चाहे जैसा हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा, नहीं उठेगा और अब भी कष्ट चाहे जितनी हो, विचार हमारी नहीं मरेगी, आह हम नहीं भरेंगे...। तो आज भी हम उसी मूलमंत्र को आत्मसात कर गांधी स्मारक निधि में सेवारत हैं।    

अमानवीय जीवन शैली से समाज और सरकार का पहले आत्मसमर्पण: मणि


अमानवीय जीवन शैली से समाज और सरकार 

का पहले आत्मसमर्पण: मणि
समाज और सरकार ने अमानवीय जीवन शैली से पहले आत्मसमर्पण किया है। आज भी बिहार के 26 जिलों में बाढ़ आयी है और हम बाढ़ में रह रहे हैं। वे बोले कि 9 साल पहले भी कोशी में 18 अगस्त को विनाशकारी बाढ़ आयी थी। उन्होंने बाढ़, भूमि व सामाजिक शांति की दिशा में कोई नयी रणनीति को अपनाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए आवासीय चिंतन शिविर आयोजन करने को कहा...
पटना: राजधानी पटना के कदमकुंआ क्षेत्र के कांग्रेस मैदान अवस्थित "बिहार स्टेट गांधी स्मारक निधि" के सभा कक्ष में बाढ़ के बाढ़ के अनुभव, स्थाई समाधान एवं बाढ़ सह जीवन विषयक एक दिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन शुक्रवार को किया गया । “स्वराज बिहार” के साथियों व कार्यकर्ताओं के साथ कंसोर्टियम के संयोजक भगवानजी पाठक के संचालन व जेपी आंदोलन के सिपाही रहे अनिल गुप्ता की अध्यक्षता में आहूत इस विचार गोष्ठी को देश के चर्चित पर्यावरणविद सह पश्चिम नदी घाट बचाओ आंदोलन के प्रणेता कुमार कलानंद मणि ने बाढ़ नियंत्रण के सवाल पर अपने सारगर्भित वक्तव्य में समाज व सामाजिक कार्यकर्ताओं को न केवल आगे आने को कहा बल्कि यह भी कहा कि1 9 50 के बाद से किए गए सभी वैज्ञानिक उपाय बाढ़ को नियंत्रित करने में नाकाम रहे हैं और अब बिहार का बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में है। यह स्पष्ट है कि समाज और सरकार ने अमानवीय जीवन शैली से पहले आत्मसमर्पण किया है। 




आज भी बिहार के 26 जिलों में बाढ़ आयी है और हम बाढ़ में रह रहे हैं। वे बोले कि 9 साल पहले भी कोशी में 18 अगस्त को विनाशकारी बाढ़ आयी थी। उन्होंने बाढ़, भूमि व सामाजिक शांति की दिशा में कोई नयी रणनीति को अपनाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए आवासीय चिंतन शिविर आयोजन करने को कहा। इस मौके पर प्रो. प्रकाश ने भी बाढ़ के साथ-साथ नदियों व तालाबों के भूमाफियाओं के द्वारा दखल-कब्ज़ा पर विस्तार पूर्वक प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा कि नदियों के मार्गों पर पहले अतिक्रमण और फिर बिक्री आखिर ये क्या हो रहा है। इस दिशा में भी समाज व सरकार सोयी हुई है। रंजीव ने भी कहा की इस साल की बाढ तटबंध टूटने से नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन का नतीजा है। बारिश से कभी इस तरह की भीषण बाढ़ नहीं आती थी।     

इसके बाद स्वराज बिहार के कार्यकर्ताओं के साथ भी बैठक किया। बैठक में प्रो. प्रकाश, रंजीव, मक़बूल भाई, मंसूर आलम, पंचम भाई, सत्यनारायण भाई, शाहजहां साज, योगेंद्र, जानकी, असर्फी सिंह, सुनीता,पृथ्वी सिंह, रमेश कुमार, खूबलाल भाई आदि ने प्रमुख रूप से हिस्सा लिया। इस आयोजन में बिहार व झारखंड के विभिन्न जिलों से सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। गोष्ठी में कुसहा त्रासदी के नौ साल पर भी चर्चा किया गया और कुसहा बाढ़ एवं वर्तमान बाढ़ में अकाल मौत को गले लगाने वालों के प्रति दो मिनट का मौन धारण कर श्रद्धाजंलि अर्पित किया गया।