Sunday, August 19, 2012

कोशी के साईं बाबा योगीराज शिरोमणि लक्ष्मीनाथ गोसाई

योगीराज लक्ष्मीनाथ


कोशी के साईं बाबा योगीराज शिरोमणि लक्ष्मीनाथ गोसाई
अब भी है पर्यटन मानचित्र से वंचित, सभी धर्मों में ’’बाबाजी’’ का है अनुयायी
साईंबाबा की तरह है इनकी महिमा, बाबाजी की महिमा आज भी कायम है सच्चाई
महाप्रायाण की सूचना भक्तो को पहले से था मालूम, योग के सच्चे साधक थे लक्ष्मीनाथ      

19 वीं सदी के महानसंत के रूप विख्यात कोशी के संत शिरोमणि लक्ष्मीनाथ गोस्वामी परमहंस वास्तव में उत्तरी बिहार सहित झारखंड के कई जिले सहित नेपाल में शिरडी (मुम्बई) के साईंबाबा से अधिक लोकप्रिय हैं. जैसे शिरडी(मुम्बई) के साईंबाबा देव दुनिया में पूजनीय हैं और चमत्कार से भी लोग अवगत हैं॰ कुछ इसी तरह सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, भागलपुर, दरभंगा, मुंगेर व झारखंड के बोकारो, रांची, धनबाद एवं उत्तर प्रदेआदि के अलावा पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों में संत लक्ष्मीनाथ गोस्वामी की भी महिमा अपने भक्तों व श्रद्धालुओं के बीच अपरमपार रही है.यही कारण है कि आस्था के सागर में गोता लगाने वाले भक्त प्रेम से इन्हें ’’बाबाजी’’ के नाम से सुमरते हैं. इसके बावजूद सच्चाई ये है कि कोशी के साईं बाबा कहे जाने वाले ’’बाबाजी’’ का धाम बिहार सरकार के पर्यटन मानचित्र से बिलग है.
सहरसा शहर से कुटी की दूरी   
कोशी प्रमंडलीय मुख्यालय सहरसा से करीब नौ किलो मीटर दूर पश्चिम ब्राह्नणों के विशाल गांव बनगांव में हाल तक बाबाजी का कोई भव्य व सुंदर मंदिर नहीं बल्कि मात्र एक कुटिया ही था.लेकिन कुटिया के पुजारी स्व.जनार्दन झा उर्फ भैलो बाबा के पुत्र जम्मू के त्रिकुटनगर वासी महेन्द्र झा ने न केवल कुटिया का जीर्णोद्धार किया बल्कि इस कदर सौन्दर्यता प्रदान करवाने का प्रयास किया कि आज वास्तव में कुटिया भाव से भरी लगती है.


कब हुआ बाबा का जन्म कहां है जन्म स्थान    
कोशी प्रमंडल अंतर्गत सुपौल जिले के गांव पररमा अवस्थित पं. बच्चा झा के घर विक्रम संवत 1850 यानि 1793 ईं.में इनका जन्म हुआ. ये कुजिलवार दिगौन मूल व कात्यायन गोत्र के मैथिल ब्राह्नण थे. इनको ज्यातिष शास्त्र, तंत्र शास्त्र व योग शास्त्र पर एकाधिकार प्राप्त था. इसलिए संत गोसाईं को योगीराज भी कहा जाता है. दरभंगा तरौणी के स्व.पं.रघुवर झा गोसाईं, बरियाही कोठी,सहरसा के स्व.क्रिष्चन जान, उत्तर प्रदेप्रयाग के स्व.राजाराम शास्त्री एवं मुंगर के मोहम्मद गौस खां इनके परमशिष्य थे.दरभंगा के लखनौर, रहुआ,फैटकी,सहरसा के बनगांव,सुपौल के पररमा, बेगुसराय के कपुरा व नेपाल के पुष्पहर (फुलहर) में इनकी प्रसिद्ध कुटिया आज भी है.
श्रद्धालुओं को मालूम थी महाप्रयाण की तिथि
अपने महाप्रयाण की तिथि भी मालूम थी और महाप्रायण के दो दिन पूर्व अपने परमशिष्य बरियाही कोठी सहरसा के स्व.क्रिष्चन जान को पत्र लिखकर दिया था कि दरभंगा के फैटकी कुटी पर मेरा अमुक तिथि को मेरा महाप्रायाण होगा और हुआ. संत लक्ष्मीनाथ द्वारा भजनावली, विवेकरत्नावली, श्रीकृष्णरत्नावली, योगासार समुच्चय, अकुलागम तंत्र, बंदीमोचन व मोह मुद्गर रचित पांडुलिपि में अब तक मात्र भजनावली व विवेकरत्नावली ही प्रकाशित हो चुकी है. इनके पांडुलिपि को स्व.पं.छेदी झा द्विजवर व स्व.पं.महावीर झा के द्वारा संग्रहीत कर सुरक्षित रखा गया जो आज भक्तों, श्रद्धालुओं व अनुयायियों के बीच उपलब्ध है.गोसाईं रचित एक भजन की चैपाई ’’चलिये कंत वहि देजहां निज घर अपना,पंचरंग महल देखिमत भूलहुं,यह सुख जानहुं निशि सपना’’. आज भी भक्तों,श्रद्धालुओं व अनुयायियों को लोभ,मोह व त्याग का संदेदेता है.



योगीराज के खराउं की होती है पूजा-अर्चना
योगीराज संत लक्ष्मीनाथ गोसाई उर्फ बाबाजी के सभी कुटिया में उनकी प्रतिमा की नहीं बल्कि उनके लकड़ी के खराउं की ही पूजा अर्चना की जाती है.बनगांव के कुटी में उनके द्वारा उपयोग किये गये खराउं आज भी मौजूद है. बाबाजी के खराउं को चांदी से मढ दिया गया है. ताकि निरंतर जलाभिषेक के बाद भी बर्बाद न हो. यही कारण है कि उनके भक्त,श्रद्धालु और अनुयायी न केवल खराउं की पूजा करते हैं बल्कि खराउं चढाकर खुद को कृपापात्र मानते हैं.आज भी लोगों में आस्था व श्रद्धा असीम है. लोग अपने किये गलती की सजा पाना आसान समझते हैं परंतु गलत बात को छुपाने के लिए ’’जय बाबाजी कहना उतना ही पाप मानते हैं जितना किसी रिश्ते को कलंकित करना.लाखों की नुकसान को भी जय बाबाजी कहने पर उन्हें यह कहकर क्षमा कर दिया जाता है कि इस गलती का फैसला अब ’’बाबाजी’’ ही करेंगे. इसलिए लोग अपनी गलती को बाबाजी के कुटिया तक जाते-जाते स्वीकार कर लेते हैं यही बाबाजी के महिमा की सच्चाई है.
मुख्यमंत्री नीतीश भी पहुचे योगीराज के कुटी  
हाल के दिनों में सूबे के मुखिया नीतीकुमार भी एक नीजी समारोह के दौरान बनगांव आगमन पर उनकी महिमा की बखान सुन कर न केवल बजबजाती सड़कों पर पैदल चलें बल्कि पूजा-अराधना भी किये.इसके बाद भी संत लक्ष्मीनाथ गोसाई की कुटी बिहार सरकार के पर्यटन मानचित्र से न केवल उपेक्षित है बल्कि धार्मिक न्यास बोर्ड की भी नजर नहीं है. हालांकि इस कुटी के आसपास आदिक्तिपीठ वशिष्ठअराधिता मां. तारा, संत कारू खिरहर,सूर्य मंदिर कंदाहा महिषी भी है. अगर सरकार व पर्यटन विभाग इन मंदिरों के विकास की दिशा में पहल करती है तो इससे कोशी क्षेत्र का पर्यटनीय विकास संभव हो सकता है.