Thursday, August 10, 2017

KOSHI DHINDHORA: वाराणसी में जन सरोकार साहित्यिक मंच ने आयोजित की व...

KOSHI DHINDHORA: वाराणसी में जन सरोकार साहित्यिक मंच ने आयोजित की व...: जन सरोकार साहित्यिक मंच ने आयोजित की विचार गोष्ठी प्रकाश राय/वाराणसी। शुक्रवार 28 जुलाई 2017 की संध्या चार बजे वाराणसी अवस्थित ...

वाराणसी में जन सरोकार साहित्यिक मंच ने आयोजित की विचार गोष्ठी

जन सरोकार साहित्यिक मंच ने आयोजित की विचार गोष्ठी



प्रकाश राय/वाराणसी। शुक्रवार 28 जुलाई 2017 की संध्या चार बजे वाराणसी अवस्थित लंका पर सेतु प्रकाशिनी एवं जन सरोकार साहित्यिक मंच के द्वारा सीमा आजाद और उनके हमसफर विश्व विजय की जिंदानामा शीर्षक जेल डायरी का लोकार्पण किया। इसके बाद फासीवाद के दौर में अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले, प्रतिरोध विषयक विचार गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। पुस्तक लोकार्पण के बाद सीमा आजाद और विश्व विजय ने अपने-अपने जेल जीवन के अनुभव सुनाए और अंत मे दोनों ने डायरी के कुछ मार्मिक अंशों को गोष्ठी के पटल पर रखा। गोष्ठी में जेल डायरी पर तीस्ता शीतलवाड़ व प्रो. शाहिना रिजवी ने विस्तार से अपनी बातों का रखा। गोष्ठी के विषय पर प्रो.प्रमोद कुमार वागड़े एवं मेरा भाषण हुआ विचार-गोष्ठी बहुत ही विचारोत्तेजक रही। छात्र-छात्राओं की बड़ी संख्या के अलावा नगर के बुद्धजीवी,साहित्यकार,लेखक,सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा बीएचयू के कई प्रोफेसर उपस्थित थे। जिनमें प्रो. बलिराज पांडेय, प्रो.चन्द्रकला त्रिपाठी, वाचस्पति, मुनीजा खान, मूलचन्द सोनकर,श्रीप्रकाश राय, सुनील यादव, कुसुम वर्मा आदि प्रमुख रूप से शामिल थे। विचार गोष्ठी की सफलता के लिए जन सरोकार साहित्यिक मंच के साथियों को लोगों ने बधाई भी दिया। 

सरकार और एनजीओ का दुधारू गाय बनकर रह गयी है कोशी की कुसहा पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण कार्य

सरकार और एनजीओ का दुधारू गाय बनकर रह गयी है कोशी की कुसहा पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण कार्य 

तीसरे चरण 2021 तक खर्च होंगे 375 मिलियन डॉलर   
संजय सोनी/राजीव झा, सहरसा: प्रकृति से परिवार तक की रंगत बदलने वाली कोसी की कुसहा त्रासदी के 18 अगस्त 2017 को नवमीं बरसी है। इस त्रासदी में फसलों से लहलहाने वाली खेतों में जहां बालू से चांदी पिट गयी वहीं हंसता-खेलता परिवार न केवल उजड़ गया बल्कि कल तक खुद को राजा समझने वाले परिवारों की स्थिति भिखमंगे से भी दयनीय हो गयी। लेकिन सरकार का भरोसा पहले से कोसी बेहतर बनाएंगे की परिकल्पना एवं पुनर्स्थापन कार्य का लक्ष्य निर्धारित समय-सीमा तो छोड़िये 2017 में भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। हां, कुसहा त्रासदी के दौरान से लेकर अब तक एनजीओ की स्थिति वही रही पर, उसके सचिव की आर्थिक स्थिति जरूर बदल गयी। संगठन की स्थिति भी वही है पर, संगठन के मुखिया की स्थिति बदल गयी। कहने का मतलब कुसहा बाढ से प्रभावित परिवारों के नाम पर फंड लेने वाले और कई राजनीतिक व सामाजिक संगठनों के प्रमुखों का चेहरा जरूर बदल गया। यही कुसहा पीड़ितों की सेवा करने वालों की करवी सच्चाई है।
अब तक नहीं हुआ रोजगार का कोई सृजन
कोसी के ईलाकों में आज भी रोजगार का कोई सृजन नहीं हो पायी। पलायन की रफ्तार थमने का नाम नहीं ले रहा। शिक्षा व चिकित्सा ढोंग साबित हो रही है। बाढ के दौरान बच्चे शिक्षा से वंचित हो जा रहे हैं। त्रासदी के शिकार गांव वासियों के ललाट पर आज भी तनाव की लकीर दिखती है। विकास की तथाकथित यात्रा सिर्फ सड़कों से लेकर बाढ आश्रय स्थल तक ही रह गयी। पुल-पुलियों के निर्माण से हद तक आवागमन के साधन सुलभ अवश्य हुए हैं। पर, बाढ से निजात के लिए सड़कों के निर्माण में भी जल निकासी की सोच को विकसित नहीं किया गया। लिहाजा तटबंध के अंदर सड़कों की जाल तो बिनी गयी, लेकिन बाढ सब कुछ बेपर्द कर दे रही है और यहां की ज्वलंत समस्याएं बाढ, कटाव, विस्थापन, पलायन, बच्चों का कुपोषण, बाल विवाह, शादी के नाम पर बालिकाओं के साथ अत्याचार जैसे कोशी की प्रमुख समस्या आज भी ज्वलंत ही बनी हुई है।
कुसहा त्रासदी के खौफ़नाक आंकड़े
कोसी नदी में आयी कुसहा की आफत बाढ़ से सूबे के 15 जिलों को बुरी तरह अपने आगोश में कर लिया गया था। जिसमें करीब 25 लाख से अधिक की आबादी प्रभावित हुआ। लेकिन कोसी व सीमांचल के चार जिलों में सुपौल, सहरसा, मधेपुरा व अररिया में बाढ़ की स्थिति बेहद गंभीर बनी। इस त्रासदी में बिहार के 15 जिलों के 412 पंचायतों के 993 गांव चपेट में थी। बाढ पीड़ितों के लिए सरकार की तरफ 362 राहत शिविर की जो व्यवस्था की गयी थी उसमें 4 लाख 40 हजार बाढ पीड़ितों ने शरण लिया। इस महाजलप्रलय में अमीरों व गरीबों के 2 लाख 36 हजार 532 घर ध्वस्त हुए। जहां 18 सौ किलो मीटर सड़क क्षतिग्रस्त हुए वहीं 11 सौ पुल, पुलिया व कलवर्ट टूट गये। फसलों का जब आंकड़ा निकाला गया तो उसमें भी धान की फसल 38 हजार एकड़, 15 हजार 500 एकड़ में मक्का व 6 हजार 950 एकड़क में अन्य फसलों के बर्बादी की बातें सामने आयी। जबकि दुधारू पशु 10 हजार, 3 हजार अन्य पशुओं के आलावा 25 सौ छोटे जानवरों की अकाल मौतें हुई। मानव क्षति में 362 लोग काल के गाल में समा गये और 35 सौ लोग लापाता दर्ज किये गये थे।
तीसरे चरण 2021 तक खर्च होंगे 375 मिलियन डॉलर   
केवल कोशी प्रमंडल के सुपौल, सहरसा व मधेपुरा जिले के प्रखंडों में हुई क्षति को अगर आंकड़ों में याद किया जाय तो सहरसा के 5, सुपौल के 5 व मधेपुरा जिले के 11 प्रखंडों में पुनर्वास करने का रखा है। इसके तहत पहले चरण में एक लाख मकान का निर्माण व क्षतिग्रस्त सड़कों और पुल-पुलियों का निर्माण सहित बाढ़ प्रबंधन का काम किया जाना है। खेतों से बालू हटाया जाना है और आजीविका के साधनों का विकास किया जाना है। जबकि पहले चरण के तहत 259 मिलियन डॉलर खर्च किया जाना था। पहले इसकी समय सीमा सितंबर 2014 रखी गयी थी और कार्य के मौजूदा रफ्तार को देखते हुए समय सीमा बढ़ाकर 2016 कर दी गयी। दूसरे चरण में 2019 तक 375 मिलियन डॉलर और तीसरे चरण में 2021 तक 375 मिलियन डॉलर खर्च किया जाना है। इतना ही नहीं कोशी आपदा से प्रभावित मधेपुरा, सुपौल व सहरसा जिले के अंतर्गत आपातकालीन कोसी बाढ पुनर्वास परियोजना के अंतर्गत बिहार आपदा पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण सोसाईटी के राषि अधियाचना के आलोक में पथ, पुल-पुलिया व मकानों के निर्माण तथा अन्य संबंधी योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए वित्तीय वर्ष 2014-15 में कुल 4 अरब 80 करोड़ 36 लाख रूपये के अनुदान राशि का आवंटन योजना एवं विकास विभाग बिहार सरकार के द्वारा किया गया था।
आंकड़ों में कोशी बेसिन परियोजना के कार्य
बिहार आपदा पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण सोसाइटी के द्वारा कोसी बाढ़ समुत्थान परियोजना के तहत 62 हजांर 644 के विरूद्ध संशोधित लक्ष्य से करीब 55 हजार 914 घरों जो प्रतिशत में 89 प्रतिषत घरों के निर्माण कार्य को पूरा करने का दावा कर रही है। जबकि शौचालय निर्माण में देरी से शुरुआत होनें के कारण अब तक करीब 34 हजार 521 शौचालयों का निर्माण पूरा कर लिया गया है जिसका प्रतिशत में 58 प्रतिशत को पूर्ण बताया जा रहा है। इसके साथ ही सभी 69 पुलों को निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है। इसी तरह परियोजना के तहत 259.16 किमी की सड़कों के भी निर्माण कार्य को पूरी तरह से पूरा किये जाने का दावा किया जा रहा है और केवल 3 पैकेजों में शेष छोटे कार्य शेष रह गये हैं। कोसी नदी में बाढ़ की सुरक्षा पूरी तरह कार्यान्वित होने की बातें कही जा रही है और वर्तमान कार्य योजना के मुताबिक काम मई 2018 तक पूरा होने की उम्मीद है। जबकि 30 जून 2018 तक सभी कार्यों को पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित है। इतना ही नहीं जल संसाधन विभाग की कुल 18 योजनाओं में से 10 योजनाओं को पूर्ण किया जा चुका है। बिहार आपदा पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण सोसाइटी के बारे में कही जा रही है कि इन कामों को पूरी निष्ठा से कर रही है। यही वजह है कि बिहार कोशी बाढ़ समुत्थान परियोजना के सफल क्रियान्वयन से प्रेरित होकर विश्व बैंक के साथ बिहार कोसी बेसिन विकास परियोजना का इकरारनामा हुआ और मार्च 2016 से विधिवत कार्य प्रारंभ है।