Saturday, July 29, 2017

आखिर कौन करेगा गौशाला का जीर्णोद्धार





अध्यक्ष व सचिव के समक्ष सार्वजनिक संपत्ति को बचाने की चुनौती  
एसडीओ,शौरभ जोरवाल   
सचिव,शालिग्राम देव 
राजीव झा/सहरसा: कई दशकों के बाद बनगांव गौशाला के जीर्णोद्धार की उम्मीद जगी है। ऐसा पहला मौका है जब गौशाला के पदेन अध्यक्ष के पद पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ व कर्मठ सदर अनुमंडल पदाधिकारी के रूप में सौरभ जोरवाल हैं तो सचिव के पद पर भाजपा के अनुभवी व पूर्व जिला अध्यक्ष शालिग्राम देव। इतना तो सच है कि अब तक बनगांव गौशाला के सचिव पद पर जो भी रहे हों उनमें एक के कार्यकाल को छोड़कर सबों ने गौशाला का गर विकास नही चाहा तो बर्बादी भी नही चाहा। खैर, इनमें जिन पूर्व सचिवों की बात करेंगे सब के सब स्वर्गीय हो गए हैं। अभी हाल ही में 29 मार्च 2017 को सचिव नरोत्तम तिवारी का निधन हुआ है। अब 23 जुलाई को शालिग्राम देव को सचिव मनोनयन किया गया है।
गौशाला की कब हुई थी स्थापना: वर्ष 1921 में बनगांव गौशाला की स्थापना हुई थी। बनगांव गौशाला बरियाही बाजार के सचिव जैसे पद को 70 के दशक तक शहर के प्रमुख व्यवसायी व समाजसेवी शरीखे लोगों में स्व. मनीलाल तुलस्यिान के बाद क्रमवार रूप से स्व. रामदेव साह, स्व. सत्यनारायण प्रसाद गुप्ता, स्व. नरोत्तम तिवारी आसीन रहे और सुशोभित करते हुए सफल संचालन भी किया। लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि कभी किसी ने गौशाला का विकास नही किया तो लूटा भी नहीं।
अध्यक्ष व सचिव के समक्ष चुनौती: अब वर्तमान अध्यक्ष व सचिव के समक्ष गौशाला के सफल संचालन की सबसे बड़ी चुनौती है तो करोड़ों की संपत्ति को भूमाफियाओं से अतिक्रमण मुक्त कराना उससे बड़ी चुनौती सामने है। 
सार्वजनिक संपत्ति पर 25 लोगों का कब्ज़ा: इस सार्वजनिक संपत्ति पर कथित भाड़ेदारों की नजर ऐसी है कि 50 रुपये से 200 तक का ही बड़े-बड़े कमरों का किराया होने पर भी समय पर कभी भुगतान नही किया गया है। इस वजह से शहर के चांदनी चौक स्थित गौशाला के 25 किरायेदारों पर 3 लाख 39 हजार 106 रुपया बांकी है। जिसकी वसूली के साथ-साथ उन मकानों व परिसर को मुक्त करवाना भी जटिल कार्य है। बताया जाता है कि बरियाही बाजार स्थित गौशाला के पास 12 बीघा 13 कट्ठा जमीन है। जिसमे सुधा डेयरी के दूध शीतलीकरण के लिए करीब दो बीघा दिया गया है और शेष जमीन बटिया पर 3 हजार रूपये सालाना पर दिया हुआ है। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इतने बड़े गौशाला में शहर व बरियाही लेकर महज पांच गायें ही है। दो कर्मचारी। मतलब साफ है कि अब गौशाला लुटेरी टकसाल बनी रही और आने वाले नोट छापते रहे। अब देखना यह है कि इस टकसाल पर पाबंदी लग पाती है या नही या फिर अवैध किरायेदारों समेत न्यूनत्तम दरों का लाभ उठाकर ठस्सा मार कर गौशाला को हड़पने वालों से मुक्ति मिलती है या नही।
कोसी प्रमंडल में है दर्जनों गौशाला: कोसी में कभी किसी बड़े नेताओं ने न तो गौ रक्षा की बात की है और न ही गौशाला के सम्पत्तियों की सुरक्षा चाही है। लिहाजा कोसी प्रमंडल के सहरसा, मधेपुरा व सुपौल जिले के एक दर्जन से अधिक गौशालाओं की सैकड़ों एकड़ जमीन अतिक्रमणकारियों की भेंट चढ रही है और जिस गौ माता की रक्षा के नाम पर देश के विभिन्न प्रांतों में बबाल मची हुई है, वह गौ माता इन सड़कों पर लावारिस हालत में चारा चरने के लिए भटकती मिल सकती है। यूं कही जा सकती है कि कोसी में गौशाला के बहाने राम नाम की लूट मची है और गौशाला अतिक्रमणकारी लोगों के आमदनी का एक आसान जरीया बना हुआ है। जबकि सूबे में गौशाला विकास पदाधिकारी भी कार्यरत हैं। आखिर ये कैसा विकास और किस तरह के विकास के लिए काम कर रही है।

कोई नहीं उठाता है आवाज: गौशाला के विकास के लिए इस क्षेत्र के विधायक से लेकर सांसद तक कभी अपना मुंह नहीं खोले हैं। जो भी मुंह खोले हैं वह भी गौशाला व गायों के हक में नहीं बल्कि सचिवों को खुश करने के लिए ही। इस करोड़ों की सार्वजनिक सम्पत्ति पर सरकार व प्रशासन किसी की नजर नहीं है। गौशाला की सम्पत्ति व आमदनी को सिर्फ कागज पर ही लूट करने का सिलसिला जारी रहा। गाय दान देने वालों की कमी नहीं है। लेकिन गाय दान दे तो कहां दें। लिहाजा लोग वैसे गायों की बिक्री कर दे रहे हैं और वह गायें मवेशी हाटों के माध्यम से तस्करी होकर बांग्लादेश चला जा रहा है।