Saturday, July 2, 2011

रानो सरदार को कैसे भूलेंगे कोशिवासी,कोशी की गाथा

   बाढ से निजात सरकारी योजना से नहीं 
रानो योद्धा की इच्छा शक्ति से होगी पूरी 
         जन भावनाओं का अनादर बना बाढ का कारण   

     सरकारी जिद्द ने कोसी वासियों को सुरसा के मुंह में धकेला 
बनी हुई है.
पर्यावरणविदों व नदी विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार कोसी वासियों के अनुभवों से बगैर सीख लिए तत्कालीन विशेषज्ञों की राय को नकारते हुए अपनी जिद्द से कोसी नदी को दो लम्बी तटबंध के बीच कैद तो कर दिया.जिसका खामियाजा आज हम सबों के सामने है. हर साल, बाढ , जल-जमाव एवं विस्थापन तो इसकी नियति बनी हुई है और इन समस्याओं से उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी, पलायन, भुखमरी एवं बीमारी ने तो वास्तव में कोसी को कंगाल बनाकर रख दिया है. अब हरेक साल सरकार में कोसी की जन सुरक्षा की योजना नहीं बल्कि कोसी तटबंध की सुरक्षा की योजना बनायी जाती है. कोसी नदी में हिमालय से आने वाली गाद से अब कोसी नदी की तलहटी उपर हो गयी है और तटबंध नदी की तलहटी से नीचे. जिसके कारण कोसी तटबंध के अंदर निर्धारित जल अधिग्रहण क्षमता काफी कम गयी है और कोसी बराज से कम जल निस्सरण की स्थिति में भी बाढ का खतरा मंडराने लगता है.
कोसी तटबंध के अंदर निर्वासित गांव तो काल के मुंह में होती हीं हैं. मगर कोसी तटबंध के बाहर के लोग बारूद की ढेर पर अपने को महसूस करते हैं. कभी भी कोसी नदी की विनाशकारी धारा लोगों को बहा देगी.  तत्कालीन सरकार की जिद्द ने कोसी वासियों को सदा के लिए सुरसा के मुंह में धकेला दिया है.
कोसी में एक गीत प्रचलित है-
’’रातिए जे एलै रानू गउना करैले,कोहवर घर में सूतल नीचीत.। 
जकरो दुअरिया हे रानो कोसी बहे धार, से हो कैसे सुतै हे नीचीत’’।।
 इस गीत में कहा गया है कि कोसी अपनी प्रेमी रानो सरदार को भी अपनी चंचलता के साये में कैद करने से बाज नहीं आयी. कहा जाता है कि कोसी अपनी प्रेमी रानो सरदार के सुखमय दाम्पत्य जीवन के आनंद में खलल डालने के लिए जब रानों के गौना कराकर कोहवर में अपनी पत्नी के साथ आनंद पूर्वक सोया हुआ था कि उसी रात उसके द्वार पर कोसी की बाढ आयी और उसके सिराहने में हीं हाहाकार मचाने लगी. जिससे रानो व उसकी पत्नी सो न सकी. रानो उसी क्षण कोसी में नहाने चल दिया तो कोसी उसे डूबोना चाही, तो रानो ने प्रण किया था कि कोसी तुम जिस रास्ते से गुजरोगी मैं उस रास्ते में कुदाल लेकर आगे-आगे मिट्टी काटता चलूंगा. शायद रानो सरदार कोसी को नियंत्रित करने के लिए हीं कुदाल लेकर मिट्टी काटने का संकल्प लिया था.
आज कैद कोसी नदी की बाढ व विभिषिका से कोसी वासियों को बचाने के लिए सरकारी योजना की नहीं बल्कि रानो सरदार ऐसे प्रेमी योद्धा की जरूरत है.वैसे भी चंचला व उनमुक्त कोसी नदी को दो तटबंधों के बीच कैद करना नदी के प्रकृति के ठीक विरूद्ध रही है. कोसी नदी को उसकी प्रकृति की नजरिया से अगर देखी जाय तो वे आज भी जीवन दायनी व पूजनीय है.