Wednesday, May 18, 2016

समय से पहले आ सकती है बाढ, विभाग के फुल सकते हैं हाथ-पांव



समय से पहले आ सकती है बाढ, विभाग के फुल सकते हैं हाथ-पांव

  • -पहली खेप के रूप में कोसी बराज से 41 हजार क्यूसेक जल का निस्सरण

  • - बाढ संघर्षात्मक कार्यो की तैयारी में विभाग को जुटना पड़ेगा

  • - बाढ संघर्षात्मक कार्यो के लिए सामग्रियों का भंडारण शुरूः मुख्य अभियंता   


इस बार समय से पहले कोसी नदी की धारा बलखाने लगी है। ललपनियां भी गाद के साथ नदी में उतरने लगी है। पानी की पहली खेप के रूप में कोसी बराज से मंगलवार की सुबह 41 हजार क्यूसेक जल का निस्सरण इस साल के ललपनियां की गवाह बनी है। कहने का मतलब साफ है कि बाढ अवधि के करीब एक माह पूर्व ही जल संसाधन विभाग को बाढ संघर्षात्मक कार्यो की तैयारियों में जुट जाना पड़ेगा। हालांकि जल संसाधन विभाग बीरपुर के मुख्य अभियंता प्रकाश दास ने कहा कि विभाग की ओर से कटाव निरोधक कार्यों को पूरा कर लिया गया है और बाढ संघर्षात्मक कार्यों के लिए आवश्यक सामग्रियों का जगह-जगह भंडारण किया जा रहा है।
जल संसाधन विभाग बीरपुर के मुख्य अभियंता प्रकाश दास ने पूछने पर बताया कि नेपाल प्रभाग के 19 व भारतीय प्रभाग के 43 बिन्दुओं पर कटाव निरोधी कार्य कराये गये हैं। इन कार्यो में ही ग्राम सुरक्षा के कार्य शामिल हैं। कटाव निरोधी कार्यो में सिर्फ कुछ सड़कों का काम अब तक अधूरा है। जिसे तेजी से कराया जा रहा है।
पहाड़ी ईलाके में भारी बारिश होने व तेज गर्मी की वजह से बर्फ पिघलने के कारण नदी में अचानक पानी पहूंचने से विभाग को समय से पहले सतर्क कर दिया है। यही वजह है कि बाढ अवधि के कार्यक्रमों को समय से पहले विभाग को लागू करना पड़ सकता है। जबकि बाढ का निर्धारित अवधि 15 जून से 15 अक्टूबर तक रहती है। इसके साथ ही बाढ पूर्व कराये जा रहे कटाव निरोधक कार्यो की भी समय-सीमा 15 मई को ही समाप्त हो चुकी है। कोसी बराज के सभी फाटकों को बाढ पूर्व मरम्मती एवं संपोषण कार्य पूरा कर लेना होगा। अन्यथा जिस कदर समय से पहले नदी में पानी आ गयी है तो इस बीच विभाग को कटाव निरोधी कार्यो के अलावा कोसी बराज के सभी फाटकों को भी दुरूश्त कर लेना होगा, ताकि बराज के फाटकों का परिचालन सुचारू रूप से सुनिश्चित किया जा सके। 
विभाग को हरेक साल 15 जून से 15 अक्टूबर के बीच बाढ से हुई तटबंधों व स्परों की क्षति समेत नदी क्षेत्र के गांवों की सुरक्षा के कार्यों को कटाव निरोधी कार्य में ही पूरा किया जाता है।
वैसे विभाग की ओर से बाढ 2016 के पूर्व राज्य की विभिन्न नदियों में व्यापक पैमाने पर राज्य योजना के अंतर्गत बाढ सुरक्षात्मक कार्य को समय पर पूरा कराने एवं उसके निगरानी के लिए राज्य बाढ प्रक्षेत्रों को आठ भागों में विभक्त कर प्रत्येक क्षेत्र के लिए विशेष जांच दल का भी गठन किया गया है। गठित विशेष जांच दल का दायित्व होगा कि विभिन्न स्थलों पर कटाव निरोधक, निवृत रेखा निर्माण, ग्राम एवं शहर सुरक्षा, गैप क्लोजर, बांध का उंचीकरण एवं सुदृढीकरण तथा बाढ सुरक्षात्मक कार्यों का स्थल निरीक्षण एवं प्रगति की समीक्षा करना। साथ ही निर्धारित लक्ष्य के विरूद्ध कार्यों की प्रगति एवं बाढ सुरक्षात्मक सामग्रियों की आपूर्ति व भंडारण की स्थिति की समीक्षा करना। इसकी भी समय-सीमा पांच चरणों में तय थी। जिसमें चार चरण तो खत्म हो गये और अब पांचवा चरण 22 मई से 26 मई तक निरीक्षण करना बांकी रह गया है और 28 मई 2016 को फोटोग्राफी के साथ स्थलीय निरीक्षण का प्रतिवेदन मुख्यालय को समर्पित करना है। लेकिन अभी निरीक्षण के साथ-साथ रिपोर्ट भी समर्पित करने का समय शेष है और कोसी नदी की धारा समय से पहले उतावली हो गयी है। इसलिए विभाग अगर समय से पहले सतर्क नहीं हुआ तो आपदा की परिस्थिति में हाथ-पांव फुलना तय है।

वरदान की मैया कोसी बन गयी अभिशाप की जननी



  

-ललपनियां के जरीये हिमालय से आती है नदी क्षेत्र में पांक


  • - गम का मंजर लेकर आती है कोसी नदी की ललपनियां


कोसी व दियारा क्षेत्र की कृषि के लिए संजीवनी कहे जाने वाली पांक (खाद) का अभी माकूल वक्त है। हरेक साल इसी महीने में हिमालय से चलकर शिवालयों के रास्ते मृदा की औषद्यी पांक अब भी कोसी नदी में ललपनियां के साथ नीचे उतरती है। हालांकि हिमालय क्षेत्रों में वनों की अवैध कटाई व तटबंध निर्माण की वजह से अब पांक गाद में परिवर्तित हो गयी है। यही वजह है कि वरदान साबित होने वाली कोसी मैया अभिशाप की जननी बन गयी है। हिमालय की सबसे उंची चोटी माउंट एवरेस्ट व कंचनजंघा से सप्तकोशी के रास्ते नेपाल के चतरा स्थित बराह क्षेत्र में जमीन पर कदम रखने वाली कोशी नदी पहले अपनी धारा में जल के साथ नयी मिट्टी के अलावा पहाड़ों पर सालों भर सड़े-गले पेड़-पौधों व वनस्पतियों की पांक लाती थी। लेकिन अब पहाड़ों पर पेड़-पौधों की विरानगी ने सब कुछ उलट कर रख दिया।  
बाढ से आयी मिट्टी व पांक से बढती है खेतों की उर्वरा शक्ति
मृदा के लिए प्राकृतिक औषद्यी पांक के कारण ही कोशी नदी क्षेत्रों में बिना रसायनिक खाद डाले न केवल उन्नत खेती होती है बल्कि किसी भी क्षेत्र की खेती से दस गुना फसल उपज आसानी से मिलती है। यही कारण है कि कोशी दियारा क्षेत्र में आपराधिक तांडव व कोहराम किसी न किसी रूप में मचते रहती है।
अमूमन हरेक साल मई के प्रथम पखवाड़े से लेकर जून के प्रथम सप्ताह के बीच कोशी नदी में ललपनियां उतरती है। इस ललपनियां से कोशी नदी क्षेत्र में कहीं खुशी तो कहीं गम का माहौल कायम हो जाता है। खुशी इस बात की दियारा के बालू व चिलचिलाती धूप में अब पांव पैदल नहीं चलना पड़ेगा। किसी न किसी घाट से नाव पर सवाड़ होकर तटबंध पार कर ही लेंगे। पर गम इस बात की कि करीब पांच महीने तक किस रूप में बाढ का तांडव झेलना पड़ेगा यह कहना मुष्किल होता है। खैर, अब तो कोशी नदी के पूर्वी तटबंध के बलुआहा घाट से बलुआहा तक 2000 मीटर लंबे पुल का निर्माण हो गया है। बलुआहा घाट व गंडोल के बीच मुख्य सेतु सहित 3542 मीटर लंबी अन्य 12 अदद पुलों व सड़कों का गंडोल तक निर्माण हो जाने से हरेक साल लोगों का दहलने वाला कलेजा अब थम गया है।
ललपनियां से कोई जवान तो कोई हलकान 
कोशी व दियारा की कृषि व्यवस्था में बाढ के बाद की खेती से सोना जैसी फसल उपजाना अब भी बड़ा आसान है। कोशी की बाढ से आयी नयी मिट्टी व पांक खेतों की उर्वरा शक्ति को अब भी बढा दे रही है। जिसके कारण 8 से 10 मन प्रति कðा मक्के की उपज किसान प्राप्त कर लेते हैं। कोशी व दियारा की हजारों एकड़ जमीन पर कहीं अपराधी तो कहीं दबंगो का कब्जा होता है। ऐसे खेतों में न तो खाद डालना पड़ता है और ना ही पटवन करना पड़ता है। खेती से उपजी फसल मानों किसी ने वरदान में अनाजों की झोली भर दिया हो। छोटे व मझौले किसानों को भी इसका लाभ मिलता है। छोटे व मझौले किसान तो अपनी जमीन की खेती से ही खुशहाल रहते हैं। पर, दोहटवारों सहित बिहार सरकार व गैर मजरूआ जमीन पर कब्जा जमाने के लिए ही अपराधियों के बीच आपस में खूनी टकराहट तक होती है। कोशी की ललपनियां कितने किसानों को जवान तो कितनों को हलकान कर देती है। ललपनियां की लहलहाती खेती से ही दियारा की घरे बसती व उजड़ती भी है। इसी ललपनियां ने गरीबों व दलितों को नक्सल तक का तमगा दिया है। कितने को वंश विहिन कर दिया तो कितने के घर-आंगन खुशहाली से आज भी झूम रही है।
पानी चढने का भी होता है इंतजार
नदी के पानी से वंचित खेतिहर भूमि की उपज आज भी सामान्य से अधिक ही होती है। कोशी नदी का पानी अब भी दियारा क्षेत्र के धार से उपर जिन क्षेत्रों में नहीं पहूंचती है वहां उपज बढाने के लिए किसानों को रसायनिक खाद का भरपूर उपयोग करना पड़ता है। ऐसे क्षेत्रों के किसान बाढ आने के बाद पानी चढने का भी इंतजार करते हैं। ताकि उसके खेतों में भी नयी मिट्टी व पांकी का लाभ मिल सके। हिमालय के रास्ते जमीन पर कदम रखते ही आज भी कोशी नदी किसी के लिए अभिशाप तो किसी के लिए वरदान साबित हो रही है। उनमुक्त कोशी सबके लिए बराबर थी और तटबंध में कैद होने के बाद कोशी नदी की धारा खुशी कम और गम का मंजर अधिक दे जाती है।