Tuesday, June 7, 2016

पर्यटन मानचित्र से वंचित ऐतिहासिक माँ देवी वन दुर्गा हरदी


पर्यटन मानचित्र से वंचित ऐतिहासिक माँ देवी वन दुर्गा हरदी  

 
  • -पांडव स्थापित वन दुर्गा स्थान हरदी आज भी उपेक्षित

  • वीर लौरिक के आराधना का केंद्र रहा हरदी वन दुर्गा स्थान

  • माँ देवी वन दुर्गा स्थान में प्रधानमंत्री नेहरु के भी पड़े कदम   

सहरसा

धार्मिक स्थल व धरोहरों के लिए कोसी क्षेत्र की अपनी एक गौरवमयी इतिहास है। कोसी क्षेत्र के गर्भ में एक से एक देवी-देवता व मठ-मंदीरे तो हैं, लेकिन पर्यटन विभाग के पास ऐसे धरोहरों को संजोने व विकसित करने के लिए कोई कारगर योजना नहीं है। यही वजह है कि पांडवों के अज्ञातवाशकाल के दौरान कोसी प्रमंडल के सुपौल जिले के हरदी गांव में प्रतिष्ठापित देवी वन दुर्गा मंदिर आज भी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। वैसे कहा जाता है कि राज्य व केन्द्र सरकार ने वर्ष 2005 में युनेस्को की मदद से इसके जीर्णोद्धार के लिए विस्तारित कार्य योजना बनाये जाने की चर्चा ईलाके के प्रबुद्धजन करते हैं। लेकिन वह कार्य योजन किस फाईल में गुम हो गयी यह भी गहन जांच का विषय है।
सबसे चौकाने वाली बात तो यह भी है की भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू भी अपने प्रथम कार्यकाल में ही माँ देवी वन दुर्गा की पूजा-अर्चना करने पहुचे थे। इसका ज़िक्र उनकी पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया में भी न केवल वर्णित है बल्कि स्थल के महत्व की भी बखान है।

सुपौल जिला मुख्यालय महज़ 10 किलो मीटर दूर सुपौल-सिंहेश्वर मुख्य मार्ग अवस्थित ऐतिहासिक  हरदी वन दुर्गास्थान आम जनमानस में असीम आस्था व विश्वास का केंद्र के साथ-साथ शक्ति पीठ के रूप में विख्यात है। इस धार्मिक स्थल की मान्यता है कि पालवंशकाल में यह स्थल काफी ख्याति प्राप्त बाजारों में सुमार था। इसके गवाह केन्द्रीय रेफरेंस पुस्तकालय व वाचस्पति संग्रहालय में रखी महत्वपूर्ण ताम्रपत्र आज भी है। यहां हरेक साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर वीर लौरिक की जयंती एवं भव्य मेला आयोजन की परम्परा रही है । इस मेला का आयोजन किसके द्वारा और कब शुरू की गयी है इसकी भी जानकारी किसी के पास नही है।
मेला ओ वन दुर्गा स्थल के बारे में लोगों का कहना है कि पाण्डवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान बिराटनगर जाने के वक्त विश्रामावधि काल में हरदी गांव में देवी वन दुर्गा को प्रतिष्ठापित की गयी थी। तब से लेकर अब तक इस स्थल पर मां की पूजा-अर्चणा के लिए प्रतिदिन भक्तों की भीड़ उमड़ती है ।

यह भी कहा जाता है कि 7 वीं शताब्दी के आस-पास बंगाल के राजा व पालवंश के संस्थापक गोपाल आर्य का यहां राजधानी एवं सबसे बड़ी सैनिक छावनी हुआ करता था। यह स्थल आज भी एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ के रूप में देश-विदेश में भी चर्चित है। जनश्रुति है कि मां  देवी वनदुर्गा की परम उपासक महान योद्धा वीर लौरिक मन्यार उत्तर प्रदेश के गौरा गांव से पांचवीं शताब्दी में पूजा-अर्चणा करने के लिए हरदी गांव आगमन हुआ था। यहां के राजा महबैर  अपने प्रजा के साथ अत्याचार व जुल्म किया करते थे।  राजा महबैर  के आतंक से निजात दिलाने के  फैसले के साथ ही वीर लौरिक मन्यार यहीं के होकर रह गये और फिर कभी वापस लौट कर अपने गांव गौरा नहीं गये। कहते हैं कि राजा महिचन्द साह जिनका साक्ष्य आज भी यहां महिचंदा गढ़ी व महिचंदा गांव के नाम से प्रसिद्ध है। राजा महिचन्द साह ने सेनापति बेंगठा चमार, बारूदी चौकीदार, सजल धोबी और सांभर को साथ लेकर हरदी के राजा महबैर को न केवल पराजित किया बल्कि अपना साम्राज्य स्थापित किया और  एक कुशल प्रजा पालक राजा के रूप में विख्यात हुए। इतना ही नहीं हरदी स्थान से 2 किमी पूरब रामनगर सीमा क्षेत्र स्थित वीर लौरिक के नाम से 15 डिसमील जमीन आज भी दस्तावेज में दर्ज है, जिसे लौरिकडीह के नाम से जाना जाता है। 
सनद हो कि आज भी इस स्थल पर फकत पांच फीट जमीन की खुदाई करने पर कई महत्वपूर्ण अवशेषों की प्राप्ति होती है।  इस स्थल को देखने व पूजा-अर्चना करने देश-विदेश से पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है।