Tuesday, October 29, 2019

मखाना एवं धान की खेती से वंचित जमीन में व्यापक पैमाने पर किया जा सकता है सिंघारा की खेती

कोसी में सिंघारा उत्पादन की आपार संभावना के बाद भी कृषि विभाग के महत्वांकाक्षी योजना की सूची से वंचित 

  • कम लागत में सिंघारा की खेती कर किसान हो सकते हैं आर्थिक रूप से समृद्ध 
  • जलीय फल सिंघारा में भैंस की दूध से 22 % अधिक है मिनिरल्स  
  • चपरांव गांव में सिंघारा की खेती करते किसान  
  • चपरांव में उप्तादित सिंघारा की बिक्री करती महिला  
पानी फल सिंघारा 




सहरसा, संजय सोनी 


कोसी क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों में जलीय फल सिंघारा उत्पादन की आपार संभावनाएं रहने के बाद भी कृषि विभागअपनी महत्वाकांक्षी योजना में सिंघारा उत्पादन को शामिल नहीं कर रही है। जबकि प्रत्येक साला हजारों हेक्टेयर जमीन पानी के अभाव में मखाना एवं धान की खेती वाली जमीन वंचित रह जाती है। वैसे खेतों में कृषि विभाग एवं किसान आसानी पूर्वक सिंघारा की खेती की योजना तैयार कर बेकार पड़ी जमीन से सिंघारा के रूप में सोना उपजा सकती है। सिंघारा उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिक एवं उद्यान पदाधिकारी भी कोसी क्षेत्र के ईलाके को उत्तम मानते हैं। लेकिन कोसी के ईलाकों में सिंघारा की खेती औने-पौने तरीके से की जा है। सिमरीबख्तियारपुर प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में होती है सिंघारा की खेती-
सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड के चपरांव सहित आसपास के क्षेत्र में करीब 50 एकड़ जलीय खेत में सिंघारा की खेती सदियों से की जाती रही है। चपरांव के किसान मो. गफुर, मो. अनू, मो. आसिन आदि करते हैं। अंतिम बैशाख एवं ज्येष्ठ से सिंधारा की खेती शुरू कर देते हैं और कार्तिक माह से फसल तोड़ना शुरू हो जाता है।

कितनी जमीन में होती है कितनी उपज-  
सब कुछ ठीक रहने पर एक कठ्‌ठा जमीन में 40 किलो सिंघारा का उत्पादन होता है। लेकिन डूबे परिस्थिति में भी एक कठ्‌ठा में 20 से 30 किलो फसल होना ही होना है। बीज की तैयारी के लिए फसल बचाकर किसान रखते हैं और उसका बीचरा यानि गुंज तैयार कर जलीय खेत में डाल देते हैं। गुंज जैसे जैसे बढता है उसी को तोड़कर पुन: खेत में डालने से फसल का विस्तार हाते जाता है। एक बीघा में 5 किलो बीज लगता है। मजदूर भी 500 रूपए रोज के हिसाब से मजदूरी लिया करता है। मजदूर से सिर्फ दवा की छिड़काव एवं सिंघारा तोड़ने के लिए ही की किया जाता है। सिंघारा का थोक रेट 2000 से 3000 रूपए क्विंटल है और खुदरा मूल्य 40 रूपए प्रति किलो की दर से बिक्री होती है।
गरीब किसान बटाई पर करते हैं सिंघारा की खेती-
किसानों को जल-जमाव वाली जमीन 25 हजार रूपए बीघा की दर से खेती के लिए बटाई पर उपलब्ध हो जाती है। किसानों को सिंघारा पौधा (गुंज) 10 रूपए में 3 मिलता है। वह भी सिंघारा उत्पादन करने वाले किसान ही बिक्री करते हैं।             

सिंघारा में भैंस की दूध से  22 % अधिक मिनिरल्स- 
भैंस की दूध से 22 % अधिक मिनिरल्स वाला जलीय फल सिंघारा उत्पादन की कोसी क्षेत्र में आपार संभावनाएं रहने के बाद भी कृषि विभाग अपनी महत्वाकांक्षी योजना में शामिल नहीं कर रही है। जबकि इस जलीय फल सिंघारा में प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेड की मात्रा अधिक होने का दावा आयुर्वेद में की गयी है। सिंघारा में  कार्बोहाईड्रेड की मात्रा अधिक होती है और 100 ग्राम खाने के साथ ही शरीर को 115 कैलोरी मिलती है। 
मखाना एवं धान की खेती से वंचित जमीन में आसानी से होगी खेती-  
 अप्रैल एवं मई महीने में बहुत-सी जमीन पानी के अभाव में मखाना एवं धान की खेती से वंचित रह जाती है। वैसे जमीन में जुलाई से नवंबर तक पानी भरा रहता है। जिसमें व्यापक पैमाने पर सिंघारा की खेती कर किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं और पानी फल सिंघारा की डिमांड भी कम नहीं है। साउथ बिहार में नेचूरल फार्मिंग खुब होती है। नेचूरल कंडीशन में सिंघारा की खेती आसानी से होगी। इसमें बहुत उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती है।
-बिमलेश पाण्डेय, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र, अगवानपुर, सहरसा। 
जलीय कृषि की आपार संभावनाए हैं- 
जलीय कृषि की अापार संभावनाएं है। जल-जमाव वाले जमीन में कम लागत में सिंघारा की अच्छी खेती किया जा सकता है। सिंघारा को भी योजना में शामिल किया जाना चाहिए।
-संतोष कुमार सुमन, जिला उद्यान पदाधिकारी, सहरसा 
  

Tuesday, October 22, 2019

शौक के पिंजड़े में कैद हो रहा तोता, आखिर कैसे होगा तोता हीरामन मुक्त

शौक के पिंजड़े में कैद हो रहा तोता, आखिर कैसे होगा तोता हीरामन मुक्त

-बाग-बगीचा एवं जंगलों से बहेलिया शिकार कर पहुंचाते हैं शौकियों के पिंजड़े तक 
-अक्सर धान के सीजन में बहेलिया प्रजनन करने वाले वयस्क तोता को -जाल में फांस कर शहर के बाजारों में घूमघूमकर खोमचा में करते बिक्री -रेड स्पोटेड तोता प्रतिबंधित ट्रेड के साथ-साथ जाल में फंसाना कानून अपराध 
-शिडयूल फोर में 7 साल की सजा एवं 10 हजार रूपए जुमाना का है प्रावधान


संजय सोनी/सहरसा 

पिंजड़े में ताेता पालने वालों की तायदाद दिन-प्रतिदिन बढते ही जा रही है और खुले आसमान और बाग-बगीचे में विचरण करने वाला तोता को पिंजड़े में कैद कर दिया जाता है। इस कारण तोता पक्षी की भी आबादी धीरे-धीरे कम होते जा रही है। जबकि तोता का प्रजननकाल माह फरवरी से अप्रैल के बीच होता है। प्रजनन के बाद से ही बहेलिया बाग-बगीचा एवं जंगलों में शिकार कर शौकियों के पिंजड़े तक पहुंचा देते हैं। तोता पक्षी को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में शामिल नहीं किए जाने को लेकर इसके अच्छे प्रजातियों की व्यापक पैमाने पर तस्करी का भी धंधा जोरों पर चलता है। 
सड़क किनारे एवं खोमचा में खुलेआम बिकता है तोता- 
अक्सर धान के सीजन में बहेलिया प्रजनन करने वाले वयस्क तोता को जाल में फांस कर शहर के बाजारों में घूमघूमकर खोमचा में तोता बिक्री करने लगे हैं। 
वैसे सड़क किनारे से लेकर खोमचा तक तोता की बिक्री अमूमन सालों भर की जाती है। तोता बिक्री करने वाले को क्या पता की अब यह तोता पक्षी भी कुछ दिनों बाद अनजान हो जाएगी। तोता के साथ भी अन्याय होने लगी है। पहला घरेलू एवं पालतू पक्षी होने की वजह से तोता भी विलुप्ति के कगार पर जल्द हीं पहुंचने वाली है। इसका मुख्य कारण यह है की पर्यावरणविदों के नजरो में इसकी सुरक्षा की कोई चिंता नहीं रह गयी है। कोसी क्षेत्र के इलाकों में व्यापक पैमाने पर धान की खेती होती है। इस वजह से इन इलाकों में तोते की खासकर छोटे प्रजातियां खूब पायी जाती है। 
कोसी एवं नेपाल के तराई क्षेत्रों में तोता की प्रजाति- 
कोसी एवं नेपाल के तराई क्षेत्रों में मदन बेला, काग बेला,गरार, टिया, काश्मिरी, हीरामन छोटकी, हीरामन पहाड़ी, सुद्दी एवं करणा आदि अधिक पायी जाती है। इन प्रजातियों में सबसे लोकप्रिय हीरामन पहाड़ी है। इस कारण बहेलिया आसानी पूर्वक इसका शिकार कर बाज़ारों में खुलेआम बिक्री करते हैं। न कोई प्रतिबंध और न कोई कानूनी खतरा। लिहाजा धड़ल्ले से तोते की शिकार एवं बिक्री हो रही है। बेचने वालों को क्या मतलब खरीददार पाल सकेगा या नहीं। इस दिशा में वन्य एवं पक्षी प्रेमियों को ख्याल रखने की सख्त जरुरत है, अन्यथा अन्य पक्षियों की तरह तोता भी विलुप्त पक्षी की श्रेणी में आ जाएगी और हमारा समाज चर्चित गीत इक डाल पे तोता बोले और इक डाल पे मैना बोलो हैना गाते ही रह जाएंगे। 
तोते का ट्रेड एवं जाल में फंसाना प्रतिबंधित- 
देश में 5 प्रकार का तोता पाया जाता है। जिसमें कोसी के ईलाके में सर्वाधिक रूप से रेड स्पोटेड तोता पाया जाता है। इन तोता का प्रतिबंधित ट्रेड के साथ-साथ जाल में फंसाना कानून अपराध है। शिडयूल फोर 7 साल की सजा एवं 10 हजार रूपए जुमाना का प्रावधान है। वन विभाग इसके लिए टीम गठित कर तोता का ट्रेड करने और जाल में फंसाने वालों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई करेगी। 
-शशिभूषण झा, डीएफओ, सहरसा।

Saturday, March 30, 2019

अहले सुबह से मारवाड़ी समाज के घर एवं आंगन में गुंज रही ""गणगौर'' के गीत

चैत सुदी तीज को सूर्यास्त से पहले पांचों मूर्तियों को तालाब में किया जाएगा विसर्जन


नव कन्याओं के पति हंसी-खुशी नवेली दुल्हन को ससुराल ले जाएंगे विदाई 
"गोर ए गणगोर माता, खोल किवाड़ी। बाहेर उठी पुजावो सईंया, क्या फल मांगा''
सहरसा
मारवाड़ी नव कन्याओं का लोकपर्व गणगौर के गीतों से घर एवं पड़ोस का आंगन कई दिनों से सराबोर है। शहर के विभिन्न मुहल्लों में निर्वासित मारवाड़ी समाज के घर एवं आंगन में अहले सुबह से ही  गणगौर ""हरिये गोबर गीली दाबो, मोत्यां चोक पुरावो। मात्यां का दोय आखा ल्यावो निरणी गोर पुजावो।। गोर ए गणगोर माता, खोल किवाड़ी। बाहेर उठी पुजावो सईंया, क्या फल मांगा।'' गीत के बोल से गुंजायमान रहती है। गणगौर महापर्व में कुंवारी कन्यां अच्छे वर एवं नवकन्याएं ईशर, गोरा, मालन, रोवा एवं कानीराम की अराधना कर पति के दीर्घायू की कामना करती है। अंतिम दिन चैत सुदी तीज को सूर्यास्त से पहले नव कन्याएं, घर की महिलाएं, बच्चियां एवं बच्चे तालाब में पांचों मूर्तियों को विसर्जन करती है। इसके साथ ही अंतिम दिन नव कन्याओं के पति अपने ससुराल से हंसी-खुशी नवेली वधु को विदाई कर ले जाते हैं। 

कब से शुरू हुई गणगौर पूजन-
होलिका में जले बरकुला की राख एवं गाय की गोबर से 8 पिंडीय बनाकर कुंवारी व नवकन्यांए पहली चैत बदी  के दिन से गणगौर की पूजा-अर्चना शुरू करती है। इतना ही नहीं लड़कियां कुम्हार के घर जाकर मिट्‌टी लाती है और उससे भगवान शिव की प्रतिरूप ईशर, मां पार्वती के रूप गोरा, फुलवती के रूप में मालन, ईशर के बहन के रूप रोवा एवं भाई के रूप में कानीराम की मूर्ति बनाकर पूजती हैं।
गणगौर में भाई का महत्व-
गणगौर पूजा में भाई का रक्षा बंधन की तरह ही बड़ा महत्व दिया गया है। बहना भाई को भी तिलक लगाती है और भाई भी सामर्थ्य के अनुरूप बहनों को दान करती है। जिसे गौर बिन्घौरा कहा जाता है। इस परंपरा का निर्वहन मूर्ति बनाने से विसर्जन के बीच की जाती है। इस बीच गुरूवार अष्टमी को शीतला मैया की भी पूजा-अर्चना की गयी। शीतला पूजन में मारवाड़ी समाज के महिला व पुरूष सहित परिवार के सभी सदस्य मां शीतला को जल चढाकर ठंडा खाना खाए और माता को बाजरे की रोटी, राबड़ी, गुलगुल्ला आदि मिष्ठान चढाकर बसिया पर्व के रोज से ही गणगौर की मूर्ति बनाने में भी जुट गयी। 
गणगौर को पिलाती है 16 कुंआ का जल-
मूर्ति बनने के बाद लड़कियां दोपहर में गणगौर को पानी पिलाती है और गणगौर गीत भी गाती है। यह पूजा 17 से 18 दिनों की होती है। अंतिम दिन सुहागिन महिलाएं भी गणगौर को पूजती हैं। नवकन्याएं दोपहर में 16 कुंआ से जल लाकर गणगौर को पिलाती हैं। पूजा-अर्चना में सुनिधी यादुका टेकरीवाल,श्रुति यादुका टेकरीवाल, नेहा अग्रवाल, कोमल केडिया अग्रवाल, मेघा अग्रवाल गुप्ता, काजल अग्रवाल, पलक सुलतानियां, सोनी, दीपिका दहलान, प्रिया दहलान एवं सानू जगनानी इस वर्ष प्रमुख रूप से गणगौर पूज रही हैं।
गणगौर का विसर्जन समय-
तृतीया तिथि 7 अप्रैल को 4 बजे संध्या से शुरू होकर 8 अप्रैल को 4 बजकर 15 मिनट संध्या में नव कन्याओं का महापर्व गणगौर व्रत खत्म होगी। 

      






Sunday, March 17, 2019

बरियाही बाजार में होली मिलन समारोह आयोजित

बरियाही बाजार में होली मिलन समारोह आयोजित


संजय सिंह/सहरसा

जिला के कहरा प्रखंड अंतर्गत बारियाही बाजार स्थित दुर्गा मंदिर परिसर में वैश्य समाज बारियाही द्वारा होली मिलन अध्यक्ष राजू केशरी बबूल की अध्यक्षता एवं राजेश गुप्ता के संचालन में किया गया। आगत अतिथियों का स्वागत सचिव मनोज साह एवं धन्यवाद ज्ञापन उपाध्यक्ष मनोज सोनी ने किया।
वैश्य समाज बारियाही के होली मिलन समारोह का विधिवत शुभारंभ वैश्य समाज के जिलाध्यक्ष मोहन प्रसाद साह ,कार्यकारी अध्यक्ष देवेन्द्र कुमार देव , जिला प्रवक्ता राजीव रंजन साह , विजय गुप्ता , बजरंग गुप्ता , सत्यनारयाण साह , रंजीत बबलू, अमोद साह, शशि सोनी ,नवीन ठाकुर एवं नीरज राम ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस होली मिलन समारोह को संबोधित करते हुए वैश्य समाज सहरसा के जिलाध्यक्ष मोहन प्रसाद साह ने कहा होली का त्यौहार समाजिक सौहार्द का त्यौहार है। वैश्य समाज ने आज अपने इस होली मिलन समारोह में समाज के हर वर्ग के लोगों के साथ मिलकर समाज मे समरसता लाने का मिसाल कायम किया है ।

रंग और गुलला का यह त्यौहार आप सभी लिए खुशियों का त्यौहार बने यही हम और हमारी संगठन की कामना है। समारोह में पंकज गुप्ता , अमर रंजन अधिवक्ता , शिशूपाल गुप्ता , प्रदीप गुप्ता, श्याम बिहारी, पप्पू गुप्ता, राजू गुप्ता ,सुनील भगत ,गौरव केशरी ,बबूल पौदार के जिला पार्षद धीरेंद्र यादव आदि ने होली मिलन समारोह में प्रमुख रूप से मौजूद थे।

संत लक्ष्मीनाथ गोसाई की नगरी बनगांव में नशामुक्त होली मनाने की आज भी कायम है परंपरा



बनगांव में तीन दिनों तक शास्त्रीय एवं सुगम संगीत सहित नटुआ नाच से सजती है महफिल
संजय सिंह/सहरसा
एक बेरि फागुन, अाई मिलो पिया, जीवन है जग थोरी। लक्ष्मीपति पछतात राधिका, जो बिधि अंक लिखेरी। जाके कर्म घटे फागुन में, ताके बिछुड़ गये जोड़ी...होरी होय, संत लक्ष्मीनाथ गोसाई के इस चौपाई को लोग गाकर होली के रंग से सराबोर रहते हैं। मान्यता है कि मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की लठमार होली तो बनगांव में घुमौर होली की अपनी एक अलग संस्कृति है। 18 वीं सदी के महान संत लक्ष्मीनाथ गोसाई कर्म स्थली बनगांव में भगवान श्रीकृष्ण की तरह बिना राग-द्वेष के हिन्दु एवं मुस्लिम के साथ घुमौर होली मनाना शुरू किये। होली के अवसर पर बनगांव में आज भी लोक संगीत एवं शास्त्रीय संगीत से लेकर विदेशिया शैली के संगीत व नृत्य की महफिल सजती है।

आखिर बनगांव की घुमौर होली है क्या-
18 वी सदी के महान संत लक्ष्मीनाथ गोसाई की नगरी बनगांव में सदियों से नशामुक्त होली मनाने की परंपरा आज भी कायम है। जबकि होली में नशा सेवन की आम धारणा को बनगांव की पारंपरिक होली भी एक सामाजिक उदाहरण के रूप में है। वैसे बिहार में शराब पूर्णत: प्रतिबंधित होने के बाद भी कहीं न कहीं डोलते-हिलते लोगों को देखा जा सकता है।  होली त्यौहार के रोज स्वच्छ प्रतिस्पर्धा पूर्वक बनगांव की आबादी 2 भाग में बंट जाती है।  दोनों झुंड खुले बदन संपूर्ण गांव को अलग-अलग दिशा में घूमता है। गांव घुमने वाले हुजूम को लोग जैरह कहते है। जैरह संपूर्ण गांव को घूम कर बिषहरी स्थान पहुंचती है। इस बीच जगह-जगह गांव के घरों के झरोखे से मां-बहने रंग उड़ेलती है। विषहरी स्थान में मानव महल बना कर घुमौर का हुजूम शक्ति प्रदर्शन करता है। विषहरी स्थान में रंग-गुलाल के साथ होली संपन्न हो जाती है। बढती महंगाई और खत्म हो रही संस्कृति के इस दौर में संत लक्ष्मीनाथ गोसाई की कर्म स्थली बनगांव में घुमौर होली की परंपरा को अक्षुण्ण रखने की जरुरत है। होली के दिन वास्तव में हिन्दु व मुस्लिम का भेद नहीं रहता है।   
3 दिवसीय संगीत समारोह का आयोजन- 
होली में पहले एक सप्ताह पूर्व से ही शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत सहित पुबाय टोल में बबुआ बाल समाज के दरवाजा पर नटुआ नाच भी हुआ करता था। जबकि ललित झा बंगला पर वाराणसी के कलाकारों के द्वारा शास्त्रीय संगीत की रसधारा बहती रही है। लेकिन अब सप्ताह दिन में सिमट कर रह गया है। इस साल गोस्वामी लक्ष्मीनाथ होली समिति बनगांव के 3 दिवसीय समारोह का बनगांव के ग्रामीण सह रेल मंत्रालय,भारत सरकार के पूर्व निदेशक एवं नेशनल फर्टीलाईजर काॅरपोरशन के पूर्व निदेशक उदय शंकर झा उद्घाटन करेंगे।
बनगांव की होली में सजती थी शास्त्रीय संगीत की महफिल-
वर्ष 1952 के दशक से बनगांव में बनारस व दरभंगा घराने के शास्त्रीय संगीत के पुराेधाओं की महफिल होली में सजती रही है। बनगांव की होली समारोह में बनारसा घराने के प्रख्यात तबला वादक पं. सामता प्रसाद मिश्र उर्फ गोदई महाराज की भी प्रस्तुति हुई है। इस समारोह में पं. रघु झा, पं. सियाराम तिवारी, रामचतुर मल्लिक, अभय नारायण मल्लिक, प्रेम कुमार मल्लिक, राजन-साजन, गिरजा देवी, श्यामानंद सिंह, जयश्रीगुप्ता,  कैलाश महाराज, मिथिलेश कुमार झा, शारदा सिंहा जैसे प्रख्यात कलाकारों की प्रस्तुति होते रही है।      
वर्ष 2019 की कैसी होगी संगीत की महफिल-
इस साल होली को सुर, ताल व लय के साथ रंगीन बनाने के लिये बनारास के कलाकारों में डा. राम शंकर, स्वाति तिवारी, अंकिता कुमारी, ऋषव चतुर्वेदी, मोहित तिवारी गायन प्रस्तुत करेंगे। जबकि प्रीति सिंह कत्थक नृत्य के साथ तबला वादकों में पंकज राज, निर्मल यदुवंशी, ऋषव त्रिपाठी एवं पुष्कर कुमार हारमोनियम पर संगत के साथ-साथ सबों का एकल वादन भी होगा और शशांक गांगुली के बांसुरी की सुरीली आवाज से शास्त्रीय संगीत की महफिल सजेगी।  
19 मार्च से ही होली का आनंद उठाएंगे बनगांववासी-
बनगांव में किसी भी पर्व व त्योहार का निर्णय धर्मसभा के घोषणा के आधार पर होती है। धर्मसभा भी लक्ष्मीनाथ गोस्वामी के काल से चलते आ रही है। इस बार धर्मसभा में पारित निर्णय अनुसार 20 मार्च को होली पर्व होगी। जबकि बनगांव को छोड़ शहर सहित अन्यत्र क्षेत्रों में 21 मार्च को होना है। गोस्वामी लक्ष्मीनाथ होली समिति बनगांव के अध्यक्ष महावीर झा, सचिव शक्तिनाथ मिश्र एवं कोषाध्यक्ष भोलन खां के अनुसार होली की पूर्व स्थानीय दुर्गा स्थान परिसर स्थित होली मंच पर 19 मार्च की रात, विषहरी स्थान होली मंच पर 20 मार्च की रात एवं प्रमुख कार्यक्रम स्थल ललित झा बंगला पर 21 मार्च को शास्त्रीय संगीत समारोह का समागम होगा।