Tuesday, May 8, 2012

मियाचक में तौक-ताबीज से उपचार

    मियाचक में तौक-ताबीज से उपचार

बांझपन,पागलपन,लीकोरिया,भूत,प्रेत,जिन्नात,जादू, टोना, नजर, गुजर व वृद्ध-विधवा का ईलाज.ईरान के समनान से चलकर इस तंत्र व वैध-विद्या को भारत के उत्तर प्रदेश स्थति फैजाबाद में पड़वा डाला था. सहरसा के सिमरी बख्तियारपुर स्थित मशरफचक में आज भी न केवल जिंदा है बल्कि है 400 वर्ष पुरानी पद्धति का लोग लाभ उठा रहे है... 
हैरत की बात:- 
जी हां आप अगर डाक्टरों से इलाज कराकर थक चुके हों तो चिंता की कोई बात नहीं अब भी सिमरी बख्तियारपुर  के मशरफचक यानि मियाचक में बांझपन, पागलपन, लीकोरिया, भूत, प्रेत, जिन्नात, जादू-टोना, नजर-गुजर एवं वृद्ध-विधवा की इलाज तौक व ताबीज से की जाती हैयहां तौक-ताबीज से इलाज की कोई नया प्रयोग नहीं बल्कि 400 वर्ष पुरानी पद्धति है॰  
कहां है मियाचक:-  
सहरसा जिले के सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडल मुख्यालय में मियाचक नामक इस बस्ती का तंत्र-मंत्र व दुआ-ताबजि का अपना एक पुराना इतिहास और रिश्ता रहा है॰ इस बस्ती के अधिकांश लोग इसी तंत्र-मंत्र व वैधगिरि से जुड़े हैं और सच कही जाय तो इन लोगों के पूर्वजों से लेकर आज तक इनके जीवकोपार्जन का साधन भी तंत्र-मंत्र व दुआ-ताबीज करना हीं है॰
कहां से आयी इलाज की यह पद्धति:-  
कहा जाता है कि इनके पूर्वज ईरान के समनान से चलकर इस तंत्र व वैद्य वदि्या को भारत के उत्तर प्रदेश स्थति फैजाबाद में पड़वा डाला था और तकरीबन 400 सौ वर्ष पूर्व कोशी क्षेत्र के सिमरी बख्तियारपुर में भी इस विद्या का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ॰ आज भी फैजाबाद में शाम की चिराग जलने के बाद हीं शातिर भूत-प्रेत व असाध्य रोगों का उपचार मियाचक बस्ती में शुरु होती है॰ आज भी इस बस्ती के हजरतों का फैजाबाद के चिराग पर भरोसा बना हुआ है॰ करीब चार सौ वर्ष पूर्व फैजाबाद अम्बेदकर नगर से दविना मिया सादिक़ असरफ सिमरी बख्तियारपुर पहूंचे॰ इन्होंने इस विधा का नगरी बसाया तथा यह ईलाका मशरफचक के नाम से मशहूर हो गया॰
अशरफचक बन गया मियाचक  
अशरफचक को हीं लोग मियाचक के नाम से पुकारने लगे॰ हले अंग क्षेत्र भागलपुर सहित कोशी क्षेत्र भी बंगाल का हिस्सा हुआ करता था यही कारण था कि लोग भी तंत्र-मंत्र,जादू-टोना पर ज्यादा विश्वास किया करते थे॰ उसी जादू-टोना एवं तंत्र-मंत्र की नगरी के रुप में सिमरी बख्तियारपुर का असरफचक हालिया मियाचक के रुप में चर्चित है॰ 
सभी रोगों की होती है इलाज
यहां सूबे के वभिनि्न ज़िलो के दूर-दराज के गांवों से लोग बांझपन, पागलपन, लीकोरिया, भूत-प्रेत, जिन्नात जादू-टोना, नजर-गुजर एवं वृद्ध-विधवा का विश्वास के साथ इलाज कराने आते हैं॰ 

इस बस्ती के हजरतों के यहां जरुरतमंद रोगियो को ठहरने के लिए बड़ा-बड़ा रैन बसेरा भी बना हुआ है॰ इस मियाचक बस्ती में ऐसे असरफ, सैयद इमरान असरफ व अब्दुल हन्नान असरफ आद के दरवाजे पर जरुरतमंद महिलाओ व पुरुषों का तांता लगा रहता है॰
इलाके में शुरु हुई  तंत्र वदि्या पर विश्वास है॰ वे कहते हैं कि अगर विश्वास व फायदा नहीं होती तो इतनी भीड़ यहां क्यों लगती॰ यहां शुल्क नहीं बख्शीश लिया जाता है॰ इसी बस्ती के एसके असरफ बताते हैं कि भूत-प्रेत व पिचास-जिन्नात को मारपीट कर तंत्र के जरिये हाजिर कराया जाता है. उस भूत आत्मा को सदा-सदा के लिए पीड़ित मनुष्य को छुटकारा दिला दिया जाता है. तंत्र-विधा के इन हजरतों के पास एक से एक लोग देखने को मिलेंगे और तंत्र-मंत्र से भूत-पिचास को बाद में मारपीट किया जाता है. 
पहले तो परिवार वालों के द्वारा इलाज के लिए लायी गयी उन भोली-भाली मासूम महिलाओ को शिकार होना पड़ता है. जो अपने पति और परिवार वालों की संतान वह भी बेटे की मुराद पुरा नहीं कर पाने में अक्षम युवती व महिलाओ को शिकार होना पड़ता है. पीड़ित माहिलाओ को इलाज के क्रम में तंत्र-मंत्र के माध्यम से की जा रही उपचार में प्रताड़ित होना पड़ता है.

क्या कहते हैं तांत्रिक
सैयद अब्दुल हन्नान का कहना है कि तंत्र-मंत्र, जड़ी-बूटी व तौक-ताबीज हम लोगों का पुश्तैनी कारोबार है. इसके जरिये हरेक किश्म की बीमारियो की इलाज की जाती है. अल्लाह की मर्जी के बगैर दुआ-ताबीज भी काम नहीं करता है. मनुष्य को अपना कोशिश जरुर करना चाहिए.  वे बताते हैं कि तौक में मंत्र अंकित कर और ढ़ोलने में ताबीज भर कर अल्लाहताला से फरियाद कर हीं दुआ दी जाती है.