Monday, March 13, 2017

होली में छाया रहा खेसारीलाल यादव का बहिन छीनरा देवरा...वाला गाना

होली में छाया रहा खेसारीलाल यादव का बहिन छीनरा देवरा...वाला गाना
सवाल उठता है क्या इन बच्चों के लिए होली जैसे पर्व में भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भिक्षाटन ही एक माध्यम रहा। अगर इन बच्चों के प्रतिभा के अनुकुल संगीत की भी शिक्षा दिया जाता तो शायद बचपन से ही कौशल विकास हो जाता और इससे बड़ा कलाकार कोई नहीं होता...


सहरसा। इस साल होली में अबोध बच्चों की टोली शहर के बाजारों में दुकान-दुकान जाकर बहिन छीनरा देवरा...बैगनवा जीजी होई ना फ्राई...जैसे अश्लील गीतों को झूम-झूमकर गाकर सुनाया और होली का मनोरंजन किया। लोगों ने उस अबोध बच्चों के द्वारा गाये जा रहे गाने के बोल को सुनकर हंसी-ठिठौली तो जरूर किया। लेकिन नाबालिग बच्चों के होंठों की अश्लील शब्दों के उ़च्चारण से वे खुद भी शरमा जा रहे थे। उन बच्चों को लग रहा था कि उनके मुंह से ऐसे गाने नहीं गाया जाना चाहिए। जब उन बच्चों से पुछा गया कि यह गाना किसका गाया हुआ है तो फटाक से बोला कि ये गीत खेसारीलाल यादव के होली 2017 के सुपरहिट गीत है भैया।

बाल कलाकारों की टोली के प्रमुख गौतम कुमार ने बताया कि नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड सं. 19 बस स्टैंड के पीछे के हम सभी रहने वाले हैं और अपने पिता का नाम सिकन्दर मल्ल्कि बताया। इस टोली में संतोष कुमार, मुकेश कुमार, पंकज कुमार, सोनू कुमार आदि बच्चे शामिल थे। गौतम ने अंत में गायक खेसारीलाल यादव के एक गीत जान गईलू ये हो जान गईलू, हाथ नैखे लिखल हाथ के लकीर नैखे तकदीर में...बेहिचक सुनाया। अपनी सुरीली आवाजों से लोगों का खुब मनोरंजन करता रहा। लेकिन सवाल उठता है क्या इन बच्चों के लिए होली जैसे पर्व में भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भिक्षाटन ही एक माध्यम रहा। अगर इन बच्चों के प्रतिभा के अनुकुल संगीत की भी शिक्षा दिया जाता तो शायद इससे बड़ा कलाकार कोई नहीं होता।

कोसी क्षेत्र से फिल्म ‘अनारकली ऑफ आरा’ का है गहरा ताल्लुक

कोसी क्षेत्र से फिल्म अनारकली ऑफ आराका है गहरा ताल्लुक

पत्रकारिता के संघर्ष के दिनों में कहिए या मैथिली की कथा गोष्ठी के खातिर अपने अभिन्न मित्र पत्रकार निर्भय झा व युवा समाजकर्मी भगवानजी पाठक के साथ अक्सर वे सहरसा आते रहे हैं। सुपौल के डॉ. शिवेन्द्र दास, केदार कानन एवं सहरसा में स्व.महाप्रकाश व शैलेन्द्र शैली से वे जरूर मिलते थे। कोसी की माटी-पानी से पत्रकार अविनाश को भावनात्मक रिश्ता भी है...

संजय सोनी/सहरसा।
अपनी प्रदर्शन से पूर्व ही कथा, अभिनय व गानों को लेकर चर्चित भोजपुरी फिल्म अनारकली ऑफ आराका गहरा ताल्लुक कोसी क्षेत्र के सहरसा, सुपौल एवं मधेपुरा से भी है। यह फिल्म 24 मार्च को देश स्तर पर प्रदर्शित होने जा रही है। भोजपुरी फिल्म अनारकली ऑफ आराके लेखक व निर्देक एवं बाबा नागार्जन के परम शिष्य अविनाश दास के मित्रों का एक बड़ा कुनबा कोसी क्षेत्र भी रहा है। यही वजह है कि भोजपुरी फिल्म अनारकली ऑफ आराके प्रदर्शन का इंतजार कोसीवासियों को बेशब्री से है।
मुलतः मिथिलांचल की राजधानी दरभंगा निवासी अविनाश दास पत्रकारिता के संघर्ष के दिनों में कहिए या मैथिली की कथा गोष्ठी के खातिर अपने अभिन्न मित्र पत्रकार निर्भय झा व युवा समाजकर्मी भगवानजी पाठक के साथ अक्सर वे सहरसा आते रहे हैं। सुपौल के डॉ. शिवेन्द्र दास, केदार कानन एवं सहरसा में स्व.महाप्रकाश व शैलेन्द्र शैली से वे जरूर मिलते थे। वे प्रभात खबर के लिए लौटकर अविनाश कोसी क्षेत्र की संस्कृति व विभिन्न समस्याओं एवं बाढ व विस्थापन, पलायन जैसे खास रिर्पोटिंग के लिए ही प्रमुख रूप से आते थे। कोसी की माटी-पानी से पत्रकार अविनाश को भावनात्मक रिश्ता भी है। यूं कहा जाय कि सुपौल जिले के कर्णपुर स्थित भाई निर्भय का घर उनका अपना घर हुआ करता था। निर्भय से अविनाश का पारिवारिक संबंध रहा है। इसलिए पत्रकारिता जगत से फिल्म की दुनिया में कदम रखने वाले अविनाश दास की पहली भोजपुरी फिल्म अनारकली ऑफ आरा’ 24 मार्च 2017 को रीलिज होगी तो इन क्षेत्रों के सिनेमा घरों में भी खुब चलेगी। फिल्म अनारकली ऑफ आराके लेखक व निर्देशक अविनाश के लिए बिहार एवं बिहार के अन्य जिलों समेत कोसी प्रमंडल के सहरसा, सुपौल एवं मधेपुरा के लिए परिचय की जरूरत नहीं है। कोसी तटबंध के अंदर के गांवों का नाम आज भी उनकी जुबान पर आसानी से आ जाती है। कोसी की देशी मछली के स्वाद के वे काफी शौकीन हैं।
मशहूर अभिनेत्री स्वरा भास्कर की बेहद खास फिल्म
बॉलीवुड में अपने संजीदा अभिनय के लिये मशहूर स्वरा भास्कर अपनी आने वाली फिल्म अनारकली ऑफ आराको खास फिल्म मानती है। पत्रकारिता की दुनिया से फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने वाले अविनाश दास निर्देशित फिल्म अनारकली ऑफ आरा’ 24 मार्च को प्रदर्शित हो रही है। फिल्म में स्वरा भास्कर, संजय मिश्रा, पंकज त्रिपाठी एवं इश्तियाक खान की महत्वपूर्ण भूमिका हैं। फिल्म की कहानी भी अविनाश दास ने लिखी है। रांझना, तनु वेडस मनु, तनु वेडस मनु रिटर्नस, प्रेम रतन धन पायो और निल बटे सन्नाटा में अपनी अदायगी का लोहा मनवा चुकी स्वरा भास्कर फिल्म अनारकली ऑफ आराको बेहद खास मानती है।
फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा का पहला गाना 
यह रहा हमारी फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा का पहला गाना। दिलों से खेलते हो या कि कोई जंग करते हो- दुनाली लेके सरकारी हमें क्यों तंग करते हो। रामकुमार सिंह के शब्द हैं और इसे सुरों में सजाया है रोहित शर्मा ने। आवाज़ है स्वाति शर्मा की। कोरियोग्राफी है शबीना खान की। दृश्यों में अभिनेताओं का उत्साह आप देख ही रहे हैं। निर्देशक ने भी इस गाना को सुनने व सुनाने के लिए सभी को शेयर करने को कहा है। मतलब दिल की धड़कन तेज है और फिल्म रीलिज होने के साथ ही इस गाने को लोकप्रिय होने से कोई नहीं रोक सकता। 

फेसबुक की टाईम लाईन पर अविनाश की बात   


स्कूल में थे, तो कविता लिखने का शौक चढ़ा। मेरा सहपाठी था विनय भरत। हमदोनों स्कूल की छुट्टी के बाद अपनी कविताएं बस्ते में लेकर साइकिल से प्रभात खबर के दफ्तर (कोकर इंडस्ट्रियल एरिया,रांची) जाते थे। तब दरबान रोकता नहीं था। हम हरिवंश जी से मिलते थे, जो प्रभात खबर के प्रधान संपादक थे। आज वो राज्यसभा सांसद हैं। आपको कुछ कुछ याद होगा घनश्याम भैया, क्योंकि हमदोनों को सदेह आपके पास ही फारवार्ड कर दिया जाता था। उन्हीं दिनों श्रीनिवास जी, से भी दोस्ती हो गयी थी। उन्हीं दिनों कार्टून बनाते हुए मनोज भैया, भी मिल जाते थे। बाद में मैं दरभंगा होते हुए पटना आ गया। सात अप्रैल 96 से प्रभात खबर का पटना संस्करण छपना शुरू हुआ। मेरे कुछ परिचित उसमें लग गये। मैं चूंकि बहुत कच्चा था, तो मैंने कोशिश ही नहीं की। लेकिन अप्रैल बीतते बीतते रहा नहीं गया और मैं एसपी वर्मा रोड में समृद्धि अपार्टमेंट के छठे माले पर सीढ़ियां चढ़ते हुए पहुंच गया। वहीं प्रभात खबर का आॅफिस था। दरबान को मैंने हरिवंश जी के नाम एक परची पकड़ायी, ये लिख कर कि आदरणीय हरिवंश जी, आपको याद हो न हो, स्कूल के दिनों में एक लड़का अपनी कविताएं लेकर आपसे मिला करता था। हरिवंश जी दरवाजे पर आकर मुझे अपने केबिन में ले गये। खूब सारी बातें की। कहा कि प्रभात खबर से जुड़ जाओ-पत्रकारिता सीखो। तो दो मई 96 को मैंने प्रभात खबर ज्वाइन किया और फिर यही अखबार पत्रकारिता की मेरी पाठशाला बन गया। 

Saturday, March 11, 2017

होली पर्व से जुड़ी पूर्णिया का ऐतिहासिक स्थल सिकलीगढ़ किला

होली पर्व से जुड़ी पूर्णिया का ऐतिहासिक स्थल सिकलीगढ़ किला

  • सिकलीगढ़ किला बनमनखी के धरहरा में है अवस्थित
  • हिरण्यकाश्यप का नरसिंग अवतार का खंभा अब भी यादों को रहा ताजा

क्षितिज कुमार/पूर्णिया 
देश में जहां जायें आपको चैक-चैराहांे पर मंदिर बना हुआ मिल जायेंगे। अगर पूर्णिया की ही बात करें तो यहाँ भी सैकड़ो की संख्या में मंदिर है। जिसमें एक ऐसा भी मंदिर है जिसका अपना एक ऐतिहासिक महत्व व तथ्य भी है। इतना ही नहीं हिन्दू धर्म के आस्था से भी जुड़ा हुआ है। जिसकी परवाह न पूर्णिया वासियों को है और न ही बिहार सरकार को। जी हाँ, हम बात कर रहे है बनमनखी प्रखंड के धरहरा स्थित सिकलीगढ़ किला का। जहाँ भगवान विष्णु ने नरसिंग अवतार लेकर हिरण्यकाश्यप का वध किया था। प्राचीन कथा के अनुसार होलिका के मरने के बाद होली त्यौहार की शुरुआत हुई थी। बनमनखी के धरहरा में आज भी वह खंभा मौजूद है। जिसे फाड़ कर नरसिंग भगवान ने अवतार लिया एवं हिरण्यकाश्यप का वध भी किया। आज यह जगह जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़ा हुआ है। इस जगह को आज तक बिहार सरकार पर्यटन स्थल भी घोषित नहीं कर पायी है। हालांकि यह स्थल पहले से बेहतर जरूर हुआ है। इस क्षेत्र को लोग श्रीहरि नरसिंग अवतार स्थल, प्रह्लाद नगर, सिकलीगढ़ धरहरा,बनमनखी (पूर्णिया) के रूप में जानते हैं।  
जाने कैसे हुआ मंदिर का कायाकल्प 

बनमनखी प्रखंड के ही कुछ लोगों ने इस ऐतिहासिक धरोहर को अक्षुण्ण रखने का संकल्प लिया है। हरेक साल होली में यहाँ होलिका दहन का विशेष आयोजन किया जाता है। जिसे देखने के लिए देश-विदेश से षैलानी आते है। लोगो का जज्बा देख कर तत्कालीन अनुमंडला पदाधिकारी डॉ.मनोज कुमार ने ग्रामीणों का साथ दिया और सभी के अथक प्रयास से भगवान विष्णु का एक भव्य मंदिर बना। जिस खम्बे से भगवान ने नरसिंग के रूप में अवतार लिए उस जगह की घेराबंदी कर खम्बा को सुरक्षित रखा गया है। यहाँ के कोषाध्यक्ष का कहना है की इस धरोहर को बचाने के लिए विधायक से लेकर सांसद तक और पर्यटन मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक अनुरोध किया गया। मगर आजतक आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला है। इस स्थल को प्र्यटन स्थल की सूची में दर्ज कर लिया जाता तो षायद इस क्षेत्र की तस्वीर बदली होती।
भक्त प्रलाद को लेकर सम्मत पर बैठी थी होलिका
हिन्दू पंचांग के अंतिम मास फाल्गुन की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है। होली का त्योहार मनाए जाने के पीछ कई कथाएं प्रचलित हैं। होली की सबसे प्रमुख कथा में राजा हिरण्यकश्यप को राक्षसों का राजा कहा गया है। उसका एक पुत्र था जिसका नाम प्रह्लाद था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। जब उसे पता चला कि प्रह्लाद विष्णु का भक्त है तो उसने प्रह्लाद को रोकने का काफी प्रयास किया। लेकिन तब भी प्रह्लाद की भगवान विष्णु की भक्ति कम नहीं हुई। यह देखकर हिरण्यकश्यप प्रह्लाद को यातनाएं देने लगा। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिराया,हाथी के पैरों से कुचलने की कोशिश कीकिंतु भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। हिरण्यकश्यप की एक बहन थी, होलिका।
उसे वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए होलिका के वरदान का सहारा लिया। होलिका प्रह्लाद को गोद में बैठाकर आग में प्रवेश कर गयी, फिर भी भगवान विष्णु की कृपा से तब भी भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में होली का त्योहार मनाये जाने लगा।
नरसिंग अवतार ने ही किया था हिरण्यकाश्यप का वध
हिरण्यकाश्यप एक अहंकारी असुर था जिसकी कथा पुराणों में आती है। उसका वध नृसिंह अवतारी विष्णु द्वारा किया गया। हिरण्याक्ष उसका छोटा भाई था जिसका वध बराह ने किया था। विष्णु पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार दैत्यों के आदिपुरुष काश्यप व उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए। हिरण्यकाश्यप और हिरण्याक्ष। हिरण्यकाश्यप ने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा न पशु द्वारा, न दिन में और न ही रात में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से उसक प्राणों को कोई डर रहेगा। इस वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया और वह अपने को अमर समझने लगा। उसने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोकों को प्रताड़ित करने लगा। वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें व पूजा करे। उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया। भगवान विष्णु का हिरण्यकाश्यप का पुत्र प्रह्लाद घोर उपासक था और पिता के यातना व प्रताड़ना के बाद भी वह विष्णु की पूजा करता रहा। क्रोधित होकर हिरण्यकाश्यप् ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में चली जाय क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। जब होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो प्रह्लाद का बाल भी बाँका न हुआ पर होलिका जलकर राख हो गई। अंतिम प्रयास में हिरण्यकाश्यप ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया तथा प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा। एक बार फिर भगवान विष्णु प्रह्लाद को उबारने आए। वे खंभे से नरसिंह के रूप में प्रकट हुए और हिरण्यकाश्यप को महल के प्रवेश द्वार की चैखट पर, जो न घर का बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, आधा मनुष्य, आधा पशु जो न नर था न पशु ऐसे नरसिंह के रूप में अपने लंबे तेज नाखूनों से जो न अस्त्र था न शस्त्र, मार डाला। इस प्रकार हिरण्यकाश्यप अनेक वरदानों के बावजूद अपने दुष्कर्मों के कारण भयानक अंत को प्राप्त हुआ। जिस खम्बे से भगवान ने अवतार लिया वह खम्बा आज भी पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के धरहरा में विद्यमान है।


Friday, March 10, 2017

प्रेस परिषद अध्यक्ष के आदेशों को नहीं मानते सदर थाना के दरोगा

प्रेस परिषद अध्यक्ष के आदेशों को नहीं मानते सदर थाना के दरोगा

  • प्रेस परिषद अध्यक्ष ने संवाद संकलन के लिए पत्रकारों को दी है स्वतंत्रता
  • -मुख्यालय डीएसपी ने मामले को गंभीरता से लिया
  • -बनारस के एक अपराधी परिवार से संवाद संकलन कर रहे पत्रकारों को दरोगा ने वार्ता नहीं करने की दी हिदायत


पप्पन/सहरसा: अखिल भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष के आदेश का सहरसा सदर थाना पुलिस के लिए कोई मायने नहीं। सहरसा पुलिस ने अपराध में लिप्त एक परिवार से जानकारी लेने के क्रम में इन बातों को चरितार्थ भी किया है। प्रेस परिषद के अध्यक्ष ने हाल ही में देश के सभी पुलिस महानिदेशकों को संवाद संकलन करने वाले पत्रकारों को किसी भी तरह के अवरोध उत्पन्न नहीं करने की शख्त हिदायत दी थी। लेकिन सहरसा के सदर थाना पुलिस अपने पुराने रवैये पर आज भी कायम है। शुक्रवार को सहरसा सदर थाना में अपराध में लिप्त एक अपराधी के पत्नी अजिया से पत्रकारों द्वारा सवाल पूछे जाने के क्रम में वाकया सामन आया। सदर थाना पुलिस ने एक चोर गिरोह का पर्दाफास करने का दावा करते हुए शुक्रवार को पत्रकारों को विशेष जानकारी दी। इस क्रम में थाना सिरिस्ता में बैठी एक महिला को देख पत्रकारों की उत्सुकता बढ़ गई। थाना सिरिस्ता में बैठी महिला कोई और नहीं बल्कि गिरफ्तार अपराधी बनारस के शंकर पंडित की पत्नी थी। पत्रकार वार्ता के बाद पत्रकारों ने उस महिला से कुछ हकीकत जानने का जब प्रयास किया तो सदर थाना में पदस्थापित अवर निरीक्षक नितेश कुमार पूरे तैश में आ गये। अपना रौब झाड़ते हुये उन्होंने पत्रकारों को कड़ी हिदायत देते कहा कि आप लोगों को यहां किसी से भी किसी भी तरह का कोई सवाल करने का अधिकार नहीं है। उनके द्वारा दिये गये हिदायत के बाद पत्रकारों ने तत्काल अपनी चुप्पी साध लेना ही बेहतर माना। इस संबंध में जब सदर थानाध्यक्ष से संपर्क करने की कोशिश की गई तो बताया गया कि वे डीएम साहब के साथ बैठक में शामिल हैं। इस संबंध में प्रभारी एसडीपीओ सह डीएसपी मुख्यालय गणपति ठाकुर से जब बात की गई तो उन्होंने इस मामले को गंभीरता से लिया तथा कहा की वे इस मामले को देखते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि नितेष कुमार ने गलती की है पत्रकारों को संवाद संकलन करने में कहीं भी किसी तरह की मनाही नहीं की जा सकती है।

Thursday, March 9, 2017

पुल व सड़क निर्माण के लिए कोसी नदी में जल सत्याग्रह





पुल व सड़क निर्माण के लिए कोसी नदी में जल सत्याग्रह


आगरदह से शहरबन्नी की दूरी महज 6 किलो मीटर है। आगरदह में पुल व सड़क का निर्माण हो जाता है तो आसानी से लोग न केवल खड़िया जिले की सीमा में प्रवेश कर जाएंगे बल्कि राज्य के कई प्रमुख शहरों से जुड़ाव हो जाएगा। चार जिलों की सीमा का सबसे निकटतम गांव आगरदह से समस्तीपुर, दरभंगा, खगड़िया व सहरसा की दूरी 6 किलो मीटर में ही सिमट जाएगी...
संजय सोनी/सहरसा: कोसी क्षेत्र के लोगों में शहर खगड़िया से जुड़ने के लिए गजब की बेचैनी बनी हुई है। खासकर कोसी तटबंध के अंदर निर्वासित सैकड़ों गांव के लोगों को प्रमंडलीय मुख्यालय सहरसा से ज्यादा आकर्षण खगड़िया शहर की तरफ है। वैसे लोकसभा क्षेत्र खगड़िया हप जाने से राजनीती के लिए भी खगड़िया ही जाना पड़ता है। लोगों को लगता है कि खगड़िया से जुड़ जाने के बाद राज्य की राजधानी पटना समेत बिहार के कई अन्य प्रमुख शहरों तक आसानी से पहूंची जा सकती है। अभी सहरसा जिले के सलखुआ प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत चानन पंचायत के डेंगराही घाट पर महासेतु निर्माण को लेकर चली 17 दिनों की आंदोलन के खत्म हुए दो दिन भी नहीं हुआ कि सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड क्षेत्र के कठडुमर घाट व आगरदह घाट से खगड़िया जिले के शहरबन्नी तक पुल व सड़क निर्माण के लिए 8 मार्च से पुल निर्माण संघर्ष समिति के बैनर तले अनिष्चितकालीन जल सत्याग्रह शुरू कर दिया है।
क्यों बने आगरदह में पुल व सड़क


शहरबन्नी केन्द्रीय मंत्री सह लोजपा सुप्रीमो रामबिलास पासवान का गृह क्षेत्र और शहर खगड़िया के गांव शहरबन्नी तक पुल व सड़क पहले से बनी हुई है। कमला नदी के बांध फुलतोड़ा में पुल बना हुआ है। इस वजह से खगड़िया का शहरबन्नी से सीधा जुड़ाव पहले से है। आगरदह से शहरबन्नी की दूरी महज 6 किलो मीटर है। आगरदह में पुल व सड़क का निर्माण हो जाता है तो आसानी से लोग न केवल खड़िया जिले की सीमा में प्रवेश कर जाएंगे बल्कि राज्य के कई प्रमुख शहरों से जुड़ाव हो जाएगा। चार जिलों की सीमा का सबसे निकटतम गांव आगरदह से समस्तीपुर, दरभंगा, खगड़िया व सहरसा की दूरी 6 किलो मीटर में ही सिमट जाएगी। इतना ही नहीं बेगुसराय, बखरी, हसनपुर व कुशेश्वर जाने वालों को काफी आसानी होगी।
कठडुमर घाट पर पुल बबने से लाभ
 प्रखंड सिमरी बख्तियारपुर के कठडुमर घाट पर पुल बन जाने से जिला मुख्यालय सहरसा आने वालों को नदी का झमेला खत्म हो जाएगा और सोनमनखी से सहरसा आने वालों को भी राहत होगी।
कौन लोग हैं जल सत्याग्रह में शामिल
जल सत्याग्रह में विभिन्न गांवों के कुल 11 लोग षामिल हैं। बेचू यादव, रणवीर यादव, सुरेन्द्र यादव, शम्भू पंडित, सुनील सिंह, अखिलेश मिस्त्री, मिथलेश यादव, बिरजू यादव आदि 8 मार्च की सुबह से ही कोसी नदी में मचान बांध कर जल सत्याग्रह कर पुल निर्माण की संकल्प पर अड़े हैं।
आंदोलन में कौन निभा रहे सहभागिता

पुल निर्माण संघर्ष समिति के अध्यक्ष सिंधु यादव, संयोजक सह भाजपा नेता अरविंद कुमार सिंह जमुनियां, पूर्व विधायक सह भाजपा नेता सुरेन्द्र यादव, रणविजय सिंह, चन्द्रकिशोर चौधरी, राजकिशोर यादव आदि के आलावा बिनचू यादव. रघुवीर यादव, अखिलेश यादव. सुभाष यादव, गणेश पंडित, अमरनाथ सिंह, रणविजय सिंह, सुरेंद्र यादव, सिन्धी यादव, रायगीर यादव, पंकज सिंह, सुधीर सिंह, दशरथ धर्म, रामदेव सादा, बेचु यादव, प्रमोद यादव, चंदेश्वरी यादव, हाकिम यादव, फूल कुमारी देवी,  देवकी देवी, अलोधनी देवी, लीला देवी, बेचनी देवी, मंजू देवी, गौरी देवी, बिजली देवी, अमला देवी, आशा देवी, अनिल देवी शामिल हैं।