Wednesday, July 6, 2011

आदि दिवारी विषहरा दरबार


             मंत्र सिद्धी के लिए विख्यात है 
       आदि दिवारी विषहरा दरबार  

  •    नेपाल व पश्चिम बंगाल से दिवारी पहुचते है मंत्र साधक  
  •   ग्रामीण महिलाओं की उमड़ती है भीड़







                           आदि दिवारी स्थान   


    पौराणिक कैलदह नदी तट पर अवस्थित माँ विषहरी भगवती दिवारी मंदिर में श्रावण पूर्णिमा (रक्षा-बंधन) को सिद्धी पाने के लिए नेपाल, पश्चिम बंगाल,उड़ीसा सहित  बिहार के कई क्षेत्रों से मंत्र साधक सिद्धी पाने के लिए मैया के दरबार में हाजिर होते हैं.मंत्र साधकों एवम् मैया पूजन के लिए भक्तिन महिला व पुरषों की भीड़ उमड़ी रहती है.
    कोशी प्रमंडलीय मुख्यालय के जिला सहरसा से करीब 5 किलो मीटर दक्षिण सदर प्रखंड कहरा के दिवारी पंचायत स्थित माँ विषहरी भगवती दिवारी का ऐतिहासिक  व पौराणिक महत्व है.मंदिर की परम्परा रही है कि पुजारी नाई जाति के ही वंशज होते आ रहे हैं.पूरे श्रावण माह के मंगलवार को माँ विषहरी भगवती के दरबार में बैरागन मेले का आयोजन होता है और पूजा-अर्चना के लिए दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों से माहिलाओ की ताँता लगी रहती है. कोशी के इलाके में भगवती पूजन की एक परम्परा है कि ग्रामीण महिलाएं समूह बनाकर शहर-गाव के देहरी-देहरी घूमकर माँ विषहरी की गीत गाकर डाली मांगती है और श्रावण पूर्णिमा के ही दिन डाली से मांगी रकम से मैया को चढ़ावा चढ़ाया जाता है.मंदिर परिसर में एक पौराणिक कूप है. श्रद्धालुओं दुआरा इस कूप में विषधर को धान का लावा व गाय की दूध पिलाने की भी प्रथा है. जिसका आज-तक श्रद्धालुओं दुआरा निर्वहन किया जा रहा है. जबकि इस मौके पर कूप व मंदिर परिसर में श्रद्धालुगण को सर्प का भी दर्शन होते रही है. इस मौके पर व इस विषहरी मंदिर में दूध व धान का लावा चढाने वाले को विषधर कुछ नहीं बिगार पाता है. इस भगवती मंदिर की एक मान्यता यह भी है की अगर किसी को कोई सर्प या बिछु डस लेता है तो मैया को चढ़ाया गया नीर (जल) पिलाने मात्र से ही विष नहीं चढ़ता है.जिसके कारण श्रावण  पूर्णिमा के दिन मईया पर चढ़ाये गए नीर को ग्रहण करने के लिए श्रद्धालुओं को काफी मसक्कत करना पड़ता है.
    श्रावण पूर्णिमा के दिन मंत्र साधक अपने चेलो के साथ पहले तालाब में स्नान कर स्वच्छ हो लेते है और अलग-अलग टोली में मईया के दरबार में चाटी चलाकर सिद्धी प्राप्ति करते है.जिसकी चाटी नहीं चली उसका मंत्र सिद्ध नहीं हुआ.उसे फिर अगले साल सिद्धी के लिए मैया के दरबार में आना पड़ेगा.मंदिर के भंडारी रामेश्वर राम का कहना था कि सिद्धी के लिए भगवती की पांचो बहन विषहरा,दौतला,
    पौदमा,अरवा एवं मैना के खुश होने के बाद ही चाटी चलती है.
    भगवती मंदिर से सटकर बहने वाली पौराणिक कैलदह नदी भी सुख गयी है. सिर्फ नदी की धार की रेखा दिखलाई देती है. मंदिर परिसर में विशाल बरगद व पीपल का पुराना वृक्ष आज भी है. जहाँ पहले इस मौके पर विभिन्न प्रजातियों के हजारो सर्प देखने को मिलता था वही आज पूजा के लिए भी दर्शन दुर्लभ हो गया है. मईया के दरबार में छागर बलि चढाने की भी प्रथा है.यहाँ छागर का पान-पूजा के बाद कान काट कर ही छोड़े जाने की नियम हो गयी है. इस प्रथा से बलि प्रदान में कमी आई है. अब श्रद्धालुओं की सजगता के कारण विशाल मंदिर का निर्माण भी किया जा रहा है.इस दिशा में पूर्व सांसद दिनेश चन्द्र यादव का योगदान सराहनीय है.     

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