अब
न कोठा है और न कोठे वाली. आर्थिक विपन्नता व अशिक्षा ने मुजरे की स्वच्छ परम्परा
को देह के गणित में उलझा कर रख दिया है. जब तवायफ मंडी की तवायफों को शास्त्रीय
संगीत ,ठुमरी ,गीत , गजल नहीं आती हो तो जीने के लिए देह
बेचना हीं पड़ेगा. भले हीं वह अश्लील गानों के सहारे हो या सीधे हम बिस्तर होकर.
आज हर तवायफ मंडी की कमोवेश यही एक कोड़ा सच है कि देह बेचकर हीं कोठा बनाया जा
सकता.
-:तवायफी
से ज्यादा पैसा है देह धंधा में:-
तवायफी
में अब इतना पैसा नहीं बच पाता कि ये कोठा बना सके.देह धंधा में फंसी युवतियां भी
बाहर निकलना चाहती है. नतीजा चकला मालिकों के चंगुल से निकलना इनके बूते की बात
नहीं रह गई है. लाचार,बेवश अबलाओं को कोई बेटी तो कोई नतनी
या कोई पोती बनाकर गैरों से जिश्म नोचवाने का धंधा करवाता है.अब तवायफ मंडी में
तबले की थाप और घूंघरूओं की खनक नहीं सुनाई देती, बस सुनाई देती है तो उन बेवश, लाचार, अबलाओं की आह,करवाहट. जिसे न जाने चौबीस घंटों में
कितने बार देह को नोचवाना पड़ता हो पैसों की खातिर. फिर भी सुख -चैन से जीवन नहीं
जी पाती है मंडी की वेश्याएं.
कोसी
व पूर्णिया प्रमंडल में भी तवायफ मंडी है. लेकिन गुजरे जमाने ने भी इस मंडी के
तवायफों को जीने के लिए जिश्म बेचने को मजबूर कर दिया है. अब इन मंडियों के कोठे
पर मुजरे की नहीं जिश्म की नुमाईश होती है. लेकिन फिर भी इक्के-दुक्के तवायफ आज “ी मुजरा संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखे
हुए है. इन मंडियों की एक चर्चित नर्तकी मीरा आज भी घुंघरू के सहारे अपना और अपने परिवार का
भरण-पोषण करती है. मीरा कहती है कि घुंघरू से जिस दिन मैं अलग हुई उस दिन मरना
बेहतर समझूंगी.
-:बाहर
की बेटियों से करवायी जाती है अक्सर धंधा:-
इस
तवायफ मंडी में भी अब बाहर से बहला-फूसला कर या फर्जी ब्याह कर लायी गयी यूवतियों
से देह व्यापार का धंधा बेधड़क करवाया जा रहा है.नाम न छापने के शर्त पर धंधे में
शामिल एक लड़की कहती है कि भूख से मर जाने से बेहतर है एड्स से मर जाना.मुर्दो की
तरह लेट जाती हूँ ,डोरी सरकाती हॅू बस इतना भर जानती हूँ.
देह की गणित में उलझी और चकला मालिकों से त्रस्त युवतियॉं कहती है कि कहने को तो
बहुत कुछ है पर किससे किस लिए कहूँं. अपनी दर्द सुनाने से क्या फायदा. मुझे भी
लड़की और औरत की तरह जीने की तमन्नाऐं थी. परन्तु ये तमन्नाऐं अब खत्म हो चुकी है.
अब हर रोज जीती हूँ और मरती हूँ.
-:सोने
की जंजीर करम फुटने की निशानी:-
वे
कहती है कि ये गले में सोने की जंजीर किसी प्यार की निसानी नहीं बल्कि मेरी किस्मत
फूटने की निशानी है. इस जंजीर को जब-जब देखती हूँ तो मुझे अपनी फूटी किस्मत का वह
दिन याद आ जाती है जब मेरी कथित मॉं ने मुझे एक अनजान अधेर मर्द के पास धकेल कर
कमरे के अंदर कर दी और मेरे लाख गिरगिराने व आरजू करने पर भी उसने नहीं माना और अपना हवस पूरा किया.
उसने
कही मानो वह रात मेरी जिन्दगी की सबसे काली रात थी और उस दिन से मैं रंडी बन गई जो
आज तक हूँ. घर बसाने के सवाल पर कहती है कि मैं भी घर बसाना चाहती हूँ पर प्रश्न उठता है
आखिर किसके साथ. यहॉं हर कोई आने वाला लम्बी-चौड़ी चिकनी-चुपड़ी बातें तो करता है
परन्तु जीवन-साथ बनाने से कतराता है. ऐसा एक पागल दिवाना अवश्य मिला जो समाज की
तमाम बाधाओं को झेलने के लिए तैयार है,लेकिन
मैं उसके जीवन को बिगाड़ना नहीं चाहती क्यों कि रंडी मंडी में हीं अच्छी लगती है
घर में नहीं.
-:अपराधी
व पुलिस दोनों करते हैं प्रताडि़त:-
इस
तवायफ मंडी की तवायफों एवं वे’याओं
को अपराधी व पूलिस दोनों के द्वारा प्रताडि़त किया जाता है. अपराधी अपना हवश पूरा
करना चाहता है तो पुलिस अपराधी को संरक्षण देने के नाम पर जब चाहे रात-दिन तलाशी
कर प्रताडि़त करती है. पुलिस के द्वारा किये गये कार्रवाई को यहॉं के लोग सही
मानते हैं, लेकिन छापेमारी के नाम पर नाच गाना से
जुड़ी महिलाओं एवं उनके बच्चों को जो परेशान करती है. उससे इसके जीवन यापन पर फर्क
पड़ता है.
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