कोशी का कलात्मक व दुर्लभ सूर्य मंदिर कंदाहा |
नये रंग-रोगन मे सूर्य मंदिर कंदाहा |
देश के सूर्य मंदिरों में कंदाहा की भी चर्चा
- एतिहासिक,पौराणिक व दार्शनिक रूप से भी महत्वपूर्ण
सहरसा जिला मुख्यालय से करीब 10 किलो मीटर पश्चिम बनगांव-गोरहोघाट
चौक से उत्तर कंदाहा गांव है. महिषी प्रखंड क्षेत्र के कंदाहा गांव में भगवान
सूर्य की अतिप्राचीन मंदिर है. देश के नौ सूर्य मंदिरों में सूर्य मंदिर कंदाहा भी
काले पत्थर की कलात्मक व दुर्लभ सूर्य की मूर्ति के लिए चर्चित है. पुरातत्वविदों
की नजर में इसकी खास महत्व है.
मईया खष्टि की दुर्लभ मूर्ति |
सूर्य मंदिर कंदाहा की संक्षिप्त गाथा
कोशी प्रमंडलीय मुख्यालय सहरसा के महिषी प्रखंड अंतर्गत प्राचीन
नाम कंचनपुर (कंदाहा) में मिथिला के ओइनवर (ओनिहरा) वंश के राजा हरिसिंह देव के द्वारा
चौदहवीं शताब्दी में स्थापित किया गया था. मूर्ति के माथे के ऊपर मेष राशि का
चित्र अंकित रहने की वजह से वैसे यह कहा जाता है की द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण
के पुत्र साम्भ के द्वारा स्थापित है. कंचनपुर को कभी सुजालगढ़ के नाम से भी जाना
जाता था. काले पत्थर के सूर्य की अदभुत मूर्ति और चौखट पर उत्कृष्ट लिपि पर्यटकों
व पुरातत्वविदों को अपनी ओर आकर्षित करती है.
देश के प्रमुख सूर्य मंदिर
दुनिया की सबसे प्राचीन सूर्य मंदिर मे मूलतान और देश की सबसे प्राचीन
सूर्य मंदिरों मे उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर की सर्वत्र चर्चा होती है॰ जबकि गुजरात
का मोदरई सूर्य मंदिर, आंध्र प्रदेश
का अरासब्ली मे नारायण स्वामी सूर्य मंदिर, तमिलनाडू का कंबकोणम
सूर्य मंदिर, जम्मू-कश्मीर का मार्तंड सूर्य मंदिर, उतराखंड के अलमोरा स्थित कटारमल सूर्य मंदिर, श्री पहाड़
सूर्य मंदिर आसाम, मध्य प्रदेश के उन्नाव स्थित भार्मण्य सूर्य
मंदिर के अलावे बिहार के गया स्थित दक्षिणार्क सूर्य मंदिर, बारून
स्थित देव व पुणार्क सूर्य मंदिर एवं सहरसा ज़िले के महिषी प्रखण्ड क्षेत्र के कंदाहा
गांव स्थित कंदाहा सूर्य मंदिर है॰
कंदाहा सूर्य की मूर्ति |
पुरातत्व निदेशालय की नजर मेँ
पुरातत्व निदेशालय पटना आंचल के तत्कालीन
पुरातत्वविद अधीक्षण फणिकांत
फणिकांत मिश्र ने भी चौखट पर अंकित लिपि को पढ़कर दुर्लभ बताया था. पुरातत्वविद अधीक्षण श्री मिश्र ने कहा
की चौखट पर अंकित लिपि से स्पष्ट होता है कि मूर्ति चौदहवीं शताब्दी कि है॰ वे बोले कि वर्ष 1985 में इस मंदिर का एएसआई (भारतीय
पुरातत्व सर्वेक्षण) के तहत चयन किया गया है और इसकी गहन अध्ययन की जरूरत है॰ दुर्लभ सूर्य यंत्र |
पहलीबर किसने की जीर्णोधार
इस मंदिर का जीर्णोधार दरभंगा के राजा भवदेव सिंह के द्वारा किये
जाने के भी कई प्रमाण दरभंगा महाराज के संग्रहालय में उपलब्ध दस्तावेजों से ज्ञात
होता है. साथ ही महाभारत व सूर्यपुराण में भी चर्चा है. चौखट की शिलालेख पर अंकित
मजबून अब मिटती जा रही है. लेकिन कहा जाता है कि यह शिलालेख मैथिली के महान कविवर
विद्यापति के समकालीन ओइनवर वंश के शासक नरसिंह देव के शासनकाल के वक्त का है. इस
मंदिर परिसर में एक पुराना कूप भी है,जिसका अब जीर्णोधार कर दिया गया है.
सूर्य का पुराना मदिर |
पौराणिक कुआं का महत्व
श्रद्धालुओ के बीच पौराणिक कुआं की काफी महत्व है॰ इस कुआं के जल से खासकर छठ पर्व
व कार्तिक पूर्णिमा के रोज जो भी स्नान
करेगा उसके शरीर से त्वचा
रोग का नाश हो जाएगा. खासकर
सफ़ेद दाग के रोगियों के लिए ज्यादा
महत्वपूर्ण है॰ इसके अलावा कुछ दिनों तक नियमित जल के सेवन से घेघा रोग भी समाप्त होने की बात ग्रामीण कहते है॰ कहा जाता है कि दरभंगा के राजा भवदेव सिंह को
पीठिया रोग हो गया था और उसके निवारण के बाद ही न केवल मंदिर का जीर्णोधार करवाया
बल्कि मंदिर मी विधिवत् पंडित बेचू झा को बतौर
पुजारी के रूप में तैनात कर दिया गया था. आज भी पंडित स्वर्गीय बेचू झा के सातवीं
पीढ़ी में पंडित बाबूकांत झा पुजारी के रूप में पूजा-अर्चना करते हैं.
कुआं से मिली है प्राचीन अवशेष
इस प्राचीन कुआं की सफाई के दौरान ढेर सारी अवशेष भी मिली है॰ इन अवशेष में सूर्य मंत्र और अन्य शिला मौजूद है. जिसकी गहन अध्ययन की जरूरत है॰
कुआं से मिली मईया खष्टि की मूर्ति
छठ पर्व के खरना के रोज खष्टी के रूप में पूजे जाने वाली माँ खष्टी
की भी मूर्ति सफाई के दौरान कुआं से मिली है. पहले
खरना फिर सूर्योपासना की परम्परा आज भी बनी हुई है. शायद पूरे देश मे मईया खष्टी की एक मात्र मूर्ति है॰
क्या कहती है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अध्ययन
1985 में इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई)
के तहत चयनित है.
सूर्य मंदिर कंदाहा की मूर्ति न सिर्फ काले पत्थर की कलात्मक सूर्य की मूर्ति है बल्कि काफी दुर्लभ भी है॰ प्रतिमा के अंदर कृष्ण की दो पत्नियां संज्ञा व
कल्हा, सात घोड़ों और चौदह लगाम(बागडोर) के साथ सूर्य से पता
चलता है कि किस शताब्दी की यह सूर्य
मंदिर है. एक अदूतीय पंख लगी है . मूर्ति
की विशेषता यह भी कि बहुत ही दुर्लभ है. इसकी कलात्मकता की
सूक्ष्मता से लगता है की मिट्टी की
तरह नरम पत्थर से यह निर्मित है. ऐसी विशेषता
कोणार्क या देव के मूर्ति में ही हो सकता है॰ ऐसी विशेषता और कहीं नहीं देखा
जा रहा है.
विकास व सौंदर्यकरण की पहल
इस मंदिर के जीर्णोधार के लिए बिहार सरकार के तत्कालीन
कला-संस्कृति एवं युवा विभाग मंत्री अशोक कुमार सिंह ने पुरातत्व निदेशालय पटना
द्वारा 11 फरवरी 2004 को कन्दाहा सूर्य मंदिर सहरसा के विकास एवं सौंदर्यकरण योजना
का शिलान्यास कर पर्यटन को बढ़ावा देने की पहल की गयी॰ उसके बाद
किसी ने कन्दाहा सूर्य मंदिर के विकास के लिये कभी भी सार्थक प्रयास नहीं किया.
उदासीन है ज़िला प्रशासन
मंदिर के विकास के लिए जिला प्रशासन भी काफी उदासीन है.
यहां तक कि लोक आस्था के महापर्व सूर्योपासना (छठ) के मौके
पर भी आसपास के घाट व सूर्य मंदिर की साफ-सफाई और रंग-रोगन जिला
प्रशासन की ओर से नहीं करवायी जाती
है॰ इस दिशा में कदम उठाई जानी चाहिए॰ इस मौके पर मेले का भी आयोजन किया जाना चाहिए॰ लेकिन ऐसा नहीं किया जाता है॰ कुछ खास
लोगों के प्रयास से इसकी व्यवस्था की जाती है॰ लेकिन जिला प्रशासन व सूचना एवं जनसंपर्क विभाग को
जनहित में इसकी जरुरत महशूस
नहीं होती है.
मंदिर का मुख्य गेट |
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