Monday, July 4, 2011

जल आधारित कृषि मखाना

कोसी व मिथिलांचल की जल आधारित कृषि मखाना

  •       सुपाच्य व्यंजन के रूप में  मखाना स्थापित 

          मखाना कृषि मजदूरों के लिए सहज व जोखिम भी है.





जल कृषि:-कोसी व मिथिलांचल का जन-जीवन नदी सह जीवन पर आधारित रही है. इन क्षेत्रों में सामान्य कृषि के साथ जल आधारित कृषि को व्यापकता के साथ की जाती है. खासतौर पर जल आधारित कृषि को जल कृषक व मल्लाह मखाना की खेती को संयुक्त रूप से करते है. औने-पौने भावों में बिकने वाली पानी फल मखाना प्रसिद्ध व सुपाच्य व्यंजन के रूप में देश के मानचित्र पर स्थापित हो गया है. 
नदियों से आच्छादित कोसी व मिथला में तालाबों, पोखरों एवं चौर की जल प्रबंधन यहां की टिकाउ समृद्धि की कुंजी रही है. इस इलाके में सालों भर जल-जमाव की समस्या जहां सामान्य कृषि व्यवस्था को चौपट करती है वहीं जल कृषक मखाना की खेती पर निर्भर होकर जीवन यापन करते हैं. गरीब से गरीब कृषक भी सहजता पूर्वक मखाना की खेती करते हैं. मखाना कृषि मजदूरों के लिए सहज व जोखिम भी है. मजदूरों को आग व पानी दोनों से जूझना पड़ता है. 

फसल का समय:- अमूमन मार्च व अप्रैल माह से मखाना की बोआई शुरू होकर अगस्त में फसल परिपक्व हो जाती है. मखाना की एक फल में 25 से 30 दाना पाया जाता है और परिपक्व फल फूट कर पानी के अंदर जमीन में बैठ जाता है. पानी के अंदर बैठे गुडि़या ¼दाना½ को मल्लाह मजदूरों के द्वारा गोता लगाकर कृषि उपकरण गांज की सहयोग से बाहर निकाल लिया जाता है. फिर गुडि़या को सुखाकर कई साईजों में छांटने के बाद महिला व बच्चों के द्वारा भुंजाई व फोड़र्द्या कर प्रकिया की अंतिम रूप मखाना की लावा बनती है.खासकर मल्लाह जाति को हीं सर्वश्रेष्ठ मखाना उत्पादन करने की कौशल-कला में महारथ हासिल है.
देश के अंदर बिहार व आसाम में अधिकांश तौर पर मखाने की खेती होती है. आसाम में मखाना खेती की तकनीक बिहार के कोसी से हीं मिली है. अब भी इन इलाकों से आसाम में मखाना की खेती हेतु मजदूरों को ले जाया जाता है. मखाना की खेती नहीं हो तो वर्तमान में बिहार के कोसी क्षेत्र से मजदूरों के पलायन की जो स्थिति है वह चौगुणी हो जायगी. इस ईलाके की अधिकांश मानव श्रम की खपत मखाना उत्पादन में होती है. मखाना की खेती में महिला व बच्चों को भी रोजगार के सुअवसर प्राप्त होते हैं. देहाती बाजारों में उत्पादित मखाना भी अब अन्य वस्तुओं की तरह रंग-बिरंगे पाउच के अलावे अत्याधुनिक प्रचार-प्रसार के जरिए महानगरों के बाजारों पर कब्जा जमा लिया है. 
बाज़ार:- कोसी क्षेत्र से उत्पादित मखाना का लखनउ, कानपुर, दिल्ली एवं बनारस मुख्य बाजार है. जिस प्रकार देश के कई बाजारों पर मछली आपूर्ति में आंध्र प्रदेश का कब्जा है उसी तरह मखाना आपूर्ति में बिहार की कोसी व मिथिलांचल का कब्जा है. वैसे भी कोसी व मिथिलांचल में मौध ¼मधु½, माछ ¼मछली½, पान एवं मखान की संस्कृति रही है. आतिथ्य स्वागत से लेकर शादी-ब्याह, पूजा-पाठ तक में भी बगैर मखाना की रश्में पूरी नहीं होती है. कोसी व मिथिलांचल की कहावत है पान व मखान स्वर्ग में भी नहीं मिलती है. 
उपयोग:- मखाना फल का उपयोग खासकर कोसी क्षेत्र में आगन्तुकों के स्वागत के लिए माला के रूप में भी किया जाता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीकुमार व शरद यादव का भी मखाने की माला से भव्य स्वागत किया गया॰ इसके बाद भी इन नेताओं ने मखाना की खेत व किसान के विकास के लिए खास योजना शुरू नहीं किये॰ जबकि माला तो इसलिए पहनाया गया था कि वे इसकी महत्ता को समझे और इसके विकास की दिशा में सोचे॰        












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