चैत सुदी तीज को सूर्यास्त से पहले पांचों मूर्तियों को तालाब में किया जाएगा विसर्जन
नव कन्याओं के पति हंसी-खुशी नवेली दुल्हन को ससुराल ले जाएंगे विदाई
"गोर ए गणगोर माता, खोल किवाड़ी। बाहेर उठी पुजावो सईंया, क्या फल मांगा''
सहरसा
मारवाड़ी नव कन्याओं का लोकपर्व गणगौर के गीतों से घर एवं पड़ोस का आंगन कई दिनों से सराबोर है। शहर के विभिन्न मुहल्लों में निर्वासित मारवाड़ी समाज के घर एवं आंगन में अहले सुबह से ही गणगौर ""हरिये गोबर गीली दाबो, मोत्यां चोक पुरावो। मात्यां का दोय आखा ल्यावो निरणी गोर पुजावो।। गोर ए गणगोर माता, खोल किवाड़ी। बाहेर उठी पुजावो सईंया, क्या फल मांगा।'' गीत के बोल से गुंजायमान रहती है। गणगौर महापर्व में कुंवारी कन्यां अच्छे वर एवं नवकन्याएं ईशर, गोरा, मालन, रोवा एवं कानीराम की अराधना कर पति के दीर्घायू की कामना करती है। अंतिम दिन चैत सुदी तीज को सूर्यास्त से पहले नव कन्याएं, घर की महिलाएं, बच्चियां एवं बच्चे तालाब में पांचों मूर्तियों को विसर्जन करती है। इसके साथ ही अंतिम दिन नव कन्याओं के पति अपने ससुराल से हंसी-खुशी नवेली वधु को विदाई कर ले जाते हैं।
कब से शुरू हुई गणगौर पूजन-
होलिका में जले बरकुला की राख एवं गाय की गोबर से 8 पिंडीय बनाकर कुंवारी व नवकन्यांए पहली चैत बदी के दिन से गणगौर की पूजा-अर्चना शुरू करती है। इतना ही नहीं लड़कियां कुम्हार के घर जाकर मिट्टी लाती है और उससे भगवान शिव की प्रतिरूप ईशर, मां पार्वती के रूप गोरा, फुलवती के रूप में मालन, ईशर के बहन के रूप रोवा एवं भाई के रूप में कानीराम की मूर्ति बनाकर पूजती हैं।
गणगौर में भाई का महत्व-
गणगौर पूजा में भाई का रक्षा बंधन की तरह ही बड़ा महत्व दिया गया है। बहना भाई को भी तिलक लगाती है और भाई भी सामर्थ्य के अनुरूप बहनों को दान करती है। जिसे गौर बिन्घौरा कहा जाता है। इस परंपरा का निर्वहन मूर्ति बनाने से विसर्जन के बीच की जाती है। इस बीच गुरूवार अष्टमी को शीतला मैया की भी पूजा-अर्चना की गयी। शीतला पूजन में मारवाड़ी समाज के महिला व पुरूष सहित परिवार के सभी सदस्य मां शीतला को जल चढाकर ठंडा खाना खाए और माता को बाजरे की रोटी, राबड़ी, गुलगुल्ला आदि मिष्ठान चढाकर बसिया पर्व के रोज से ही गणगौर की मूर्ति बनाने में भी जुट गयी।
गणगौर को पिलाती है 16 कुंआ का जल-
मूर्ति बनने के बाद लड़कियां दोपहर में गणगौर को पानी पिलाती है और गणगौर गीत भी गाती है। यह पूजा 17 से 18 दिनों की होती है। अंतिम दिन सुहागिन महिलाएं भी गणगौर को पूजती हैं। नवकन्याएं दोपहर में 16 कुंआ से जल लाकर गणगौर को पिलाती हैं। पूजा-अर्चना में सुनिधी यादुका टेकरीवाल,श्रुति यादुका टेकरीवाल, नेहा अग्रवाल, कोमल केडिया अग्रवाल, मेघा अग्रवाल गुप्ता, काजल अग्रवाल, पलक सुलतानियां, सोनी, दीपिका दहलान, प्रिया दहलान एवं सानू जगनानी इस वर्ष प्रमुख रूप से गणगौर पूज रही हैं।
गणगौर का विसर्जन समय-
तृतीया तिथि 7 अप्रैल को 4 बजे संध्या से शुरू होकर 8 अप्रैल को 4 बजकर 15 मिनट संध्या में नव कन्याओं का महापर्व गणगौर व्रत खत्म होगी।
नव कन्याओं के पति हंसी-खुशी नवेली दुल्हन को ससुराल ले जाएंगे विदाई
"गोर ए गणगोर माता, खोल किवाड़ी। बाहेर उठी पुजावो सईंया, क्या फल मांगा''
सहरसा
मारवाड़ी नव कन्याओं का लोकपर्व गणगौर के गीतों से घर एवं पड़ोस का आंगन कई दिनों से सराबोर है। शहर के विभिन्न मुहल्लों में निर्वासित मारवाड़ी समाज के घर एवं आंगन में अहले सुबह से ही गणगौर ""हरिये गोबर गीली दाबो, मोत्यां चोक पुरावो। मात्यां का दोय आखा ल्यावो निरणी गोर पुजावो।। गोर ए गणगोर माता, खोल किवाड़ी। बाहेर उठी पुजावो सईंया, क्या फल मांगा।'' गीत के बोल से गुंजायमान रहती है। गणगौर महापर्व में कुंवारी कन्यां अच्छे वर एवं नवकन्याएं ईशर, गोरा, मालन, रोवा एवं कानीराम की अराधना कर पति के दीर्घायू की कामना करती है। अंतिम दिन चैत सुदी तीज को सूर्यास्त से पहले नव कन्याएं, घर की महिलाएं, बच्चियां एवं बच्चे तालाब में पांचों मूर्तियों को विसर्जन करती है। इसके साथ ही अंतिम दिन नव कन्याओं के पति अपने ससुराल से हंसी-खुशी नवेली वधु को विदाई कर ले जाते हैं।
कब से शुरू हुई गणगौर पूजन-
होलिका में जले बरकुला की राख एवं गाय की गोबर से 8 पिंडीय बनाकर कुंवारी व नवकन्यांए पहली चैत बदी के दिन से गणगौर की पूजा-अर्चना शुरू करती है। इतना ही नहीं लड़कियां कुम्हार के घर जाकर मिट्टी लाती है और उससे भगवान शिव की प्रतिरूप ईशर, मां पार्वती के रूप गोरा, फुलवती के रूप में मालन, ईशर के बहन के रूप रोवा एवं भाई के रूप में कानीराम की मूर्ति बनाकर पूजती हैं।
गणगौर में भाई का महत्व-
गणगौर पूजा में भाई का रक्षा बंधन की तरह ही बड़ा महत्व दिया गया है। बहना भाई को भी तिलक लगाती है और भाई भी सामर्थ्य के अनुरूप बहनों को दान करती है। जिसे गौर बिन्घौरा कहा जाता है। इस परंपरा का निर्वहन मूर्ति बनाने से विसर्जन के बीच की जाती है। इस बीच गुरूवार अष्टमी को शीतला मैया की भी पूजा-अर्चना की गयी। शीतला पूजन में मारवाड़ी समाज के महिला व पुरूष सहित परिवार के सभी सदस्य मां शीतला को जल चढाकर ठंडा खाना खाए और माता को बाजरे की रोटी, राबड़ी, गुलगुल्ला आदि मिष्ठान चढाकर बसिया पर्व के रोज से ही गणगौर की मूर्ति बनाने में भी जुट गयी।
गणगौर को पिलाती है 16 कुंआ का जल-
मूर्ति बनने के बाद लड़कियां दोपहर में गणगौर को पानी पिलाती है और गणगौर गीत भी गाती है। यह पूजा 17 से 18 दिनों की होती है। अंतिम दिन सुहागिन महिलाएं भी गणगौर को पूजती हैं। नवकन्याएं दोपहर में 16 कुंआ से जल लाकर गणगौर को पिलाती हैं। पूजा-अर्चना में सुनिधी यादुका टेकरीवाल,श्रुति यादुका टेकरीवाल, नेहा अग्रवाल, कोमल केडिया अग्रवाल, मेघा अग्रवाल गुप्ता, काजल अग्रवाल, पलक सुलतानियां, सोनी, दीपिका दहलान, प्रिया दहलान एवं सानू जगनानी इस वर्ष प्रमुख रूप से गणगौर पूज रही हैं।
गणगौर का विसर्जन समय-
तृतीया तिथि 7 अप्रैल को 4 बजे संध्या से शुरू होकर 8 अप्रैल को 4 बजकर 15 मिनट संध्या में नव कन्याओं का महापर्व गणगौर व्रत खत्म होगी।