Sunday, March 17, 2019

संत लक्ष्मीनाथ गोसाई की नगरी बनगांव में नशामुक्त होली मनाने की आज भी कायम है परंपरा



बनगांव में तीन दिनों तक शास्त्रीय एवं सुगम संगीत सहित नटुआ नाच से सजती है महफिल
संजय सिंह/सहरसा
एक बेरि फागुन, अाई मिलो पिया, जीवन है जग थोरी। लक्ष्मीपति पछतात राधिका, जो बिधि अंक लिखेरी। जाके कर्म घटे फागुन में, ताके बिछुड़ गये जोड़ी...होरी होय, संत लक्ष्मीनाथ गोसाई के इस चौपाई को लोग गाकर होली के रंग से सराबोर रहते हैं। मान्यता है कि मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की लठमार होली तो बनगांव में घुमौर होली की अपनी एक अलग संस्कृति है। 18 वीं सदी के महान संत लक्ष्मीनाथ गोसाई कर्म स्थली बनगांव में भगवान श्रीकृष्ण की तरह बिना राग-द्वेष के हिन्दु एवं मुस्लिम के साथ घुमौर होली मनाना शुरू किये। होली के अवसर पर बनगांव में आज भी लोक संगीत एवं शास्त्रीय संगीत से लेकर विदेशिया शैली के संगीत व नृत्य की महफिल सजती है।

आखिर बनगांव की घुमौर होली है क्या-
18 वी सदी के महान संत लक्ष्मीनाथ गोसाई की नगरी बनगांव में सदियों से नशामुक्त होली मनाने की परंपरा आज भी कायम है। जबकि होली में नशा सेवन की आम धारणा को बनगांव की पारंपरिक होली भी एक सामाजिक उदाहरण के रूप में है। वैसे बिहार में शराब पूर्णत: प्रतिबंधित होने के बाद भी कहीं न कहीं डोलते-हिलते लोगों को देखा जा सकता है।  होली त्यौहार के रोज स्वच्छ प्रतिस्पर्धा पूर्वक बनगांव की आबादी 2 भाग में बंट जाती है।  दोनों झुंड खुले बदन संपूर्ण गांव को अलग-अलग दिशा में घूमता है। गांव घुमने वाले हुजूम को लोग जैरह कहते है। जैरह संपूर्ण गांव को घूम कर बिषहरी स्थान पहुंचती है। इस बीच जगह-जगह गांव के घरों के झरोखे से मां-बहने रंग उड़ेलती है। विषहरी स्थान में मानव महल बना कर घुमौर का हुजूम शक्ति प्रदर्शन करता है। विषहरी स्थान में रंग-गुलाल के साथ होली संपन्न हो जाती है। बढती महंगाई और खत्म हो रही संस्कृति के इस दौर में संत लक्ष्मीनाथ गोसाई की कर्म स्थली बनगांव में घुमौर होली की परंपरा को अक्षुण्ण रखने की जरुरत है। होली के दिन वास्तव में हिन्दु व मुस्लिम का भेद नहीं रहता है।   
3 दिवसीय संगीत समारोह का आयोजन- 
होली में पहले एक सप्ताह पूर्व से ही शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत सहित पुबाय टोल में बबुआ बाल समाज के दरवाजा पर नटुआ नाच भी हुआ करता था। जबकि ललित झा बंगला पर वाराणसी के कलाकारों के द्वारा शास्त्रीय संगीत की रसधारा बहती रही है। लेकिन अब सप्ताह दिन में सिमट कर रह गया है। इस साल गोस्वामी लक्ष्मीनाथ होली समिति बनगांव के 3 दिवसीय समारोह का बनगांव के ग्रामीण सह रेल मंत्रालय,भारत सरकार के पूर्व निदेशक एवं नेशनल फर्टीलाईजर काॅरपोरशन के पूर्व निदेशक उदय शंकर झा उद्घाटन करेंगे।
बनगांव की होली में सजती थी शास्त्रीय संगीत की महफिल-
वर्ष 1952 के दशक से बनगांव में बनारस व दरभंगा घराने के शास्त्रीय संगीत के पुराेधाओं की महफिल होली में सजती रही है। बनगांव की होली समारोह में बनारसा घराने के प्रख्यात तबला वादक पं. सामता प्रसाद मिश्र उर्फ गोदई महाराज की भी प्रस्तुति हुई है। इस समारोह में पं. रघु झा, पं. सियाराम तिवारी, रामचतुर मल्लिक, अभय नारायण मल्लिक, प्रेम कुमार मल्लिक, राजन-साजन, गिरजा देवी, श्यामानंद सिंह, जयश्रीगुप्ता,  कैलाश महाराज, मिथिलेश कुमार झा, शारदा सिंहा जैसे प्रख्यात कलाकारों की प्रस्तुति होते रही है।      
वर्ष 2019 की कैसी होगी संगीत की महफिल-
इस साल होली को सुर, ताल व लय के साथ रंगीन बनाने के लिये बनारास के कलाकारों में डा. राम शंकर, स्वाति तिवारी, अंकिता कुमारी, ऋषव चतुर्वेदी, मोहित तिवारी गायन प्रस्तुत करेंगे। जबकि प्रीति सिंह कत्थक नृत्य के साथ तबला वादकों में पंकज राज, निर्मल यदुवंशी, ऋषव त्रिपाठी एवं पुष्कर कुमार हारमोनियम पर संगत के साथ-साथ सबों का एकल वादन भी होगा और शशांक गांगुली के बांसुरी की सुरीली आवाज से शास्त्रीय संगीत की महफिल सजेगी।  
19 मार्च से ही होली का आनंद उठाएंगे बनगांववासी-
बनगांव में किसी भी पर्व व त्योहार का निर्णय धर्मसभा के घोषणा के आधार पर होती है। धर्मसभा भी लक्ष्मीनाथ गोस्वामी के काल से चलते आ रही है। इस बार धर्मसभा में पारित निर्णय अनुसार 20 मार्च को होली पर्व होगी। जबकि बनगांव को छोड़ शहर सहित अन्यत्र क्षेत्रों में 21 मार्च को होना है। गोस्वामी लक्ष्मीनाथ होली समिति बनगांव के अध्यक्ष महावीर झा, सचिव शक्तिनाथ मिश्र एवं कोषाध्यक्ष भोलन खां के अनुसार होली की पूर्व स्थानीय दुर्गा स्थान परिसर स्थित होली मंच पर 19 मार्च की रात, विषहरी स्थान होली मंच पर 20 मार्च की रात एवं प्रमुख कार्यक्रम स्थल ललित झा बंगला पर 21 मार्च को शास्त्रीय संगीत समारोह का समागम होगा।


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