कोसी में सिंघारा उत्पादन की आपार संभावना के बाद भी कृषि विभाग के महत्वांकाक्षी योजना की सूची से वंचित
- कम लागत में सिंघारा की खेती कर किसान हो सकते हैं आर्थिक रूप से समृद्ध
- जलीय फल सिंघारा में भैंस की दूध से 22 % अधिक है मिनिरल्स
- चपरांव गांव में सिंघारा की खेती करते किसान
- चपरांव में उप्तादित सिंघारा की बिक्री करती महिला
पानी फल सिंघारा
सहरसा, संजय सोनी
सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड के चपरांव सहित आसपास के क्षेत्र में करीब 50 एकड़ जलीय खेत में सिंघारा की खेती सदियों से की जाती रही है। चपरांव के किसान मो. गफुर, मो. अनू, मो. आसिन आदि करते हैं। अंतिम बैशाख एवं ज्येष्ठ से सिंधारा की खेती शुरू कर देते हैं और कार्तिक माह से फसल तोड़ना शुरू हो जाता है।
कितनी जमीन में होती है कितनी उपज-
सब कुछ ठीक रहने पर एक कठ्ठा जमीन में 40 किलो सिंघारा का उत्पादन होता है। लेकिन डूबे परिस्थिति में भी एक कठ्ठा में 20 से 30 किलो फसल होना ही होना है। बीज की तैयारी के लिए फसल बचाकर किसान रखते हैं और उसका बीचरा यानि गुंज तैयार कर जलीय खेत में डाल देते हैं। गुंज जैसे जैसे बढता है उसी को तोड़कर पुन: खेत में डालने से फसल का विस्तार हाते जाता है। एक बीघा में 5 किलो बीज लगता है। मजदूर भी 500 रूपए रोज के हिसाब से मजदूरी लिया करता है। मजदूर से सिर्फ दवा की छिड़काव एवं सिंघारा तोड़ने के लिए ही की किया जाता है। सिंघारा का थोक रेट 2000 से 3000 रूपए क्विंटल है और खुदरा मूल्य 40 रूपए प्रति किलो की दर से बिक्री होती है।
गरीब किसान बटाई पर करते हैं सिंघारा की खेती-
किसानों को जल-जमाव वाली जमीन 25 हजार रूपए बीघा की दर से खेती के लिए बटाई पर उपलब्ध हो जाती है। किसानों को सिंघारा पौधा (गुंज) 10 रूपए में 3 मिलता है। वह भी सिंघारा उत्पादन करने वाले किसान ही बिक्री करते हैं।
सिंघारा में भैंस की दूध से 22 % अधिक मिनिरल्स-
भैंस की दूध से 22 % अधिक मिनिरल्स वाला जलीय फल सिंघारा उत्पादन की कोसी क्षेत्र में आपार संभावनाएं रहने के बाद भी कृषि विभाग अपनी महत्वाकांक्षी योजना में शामिल नहीं कर रही है। जबकि इस जलीय फल सिंघारा में प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेड की मात्रा अधिक होने का दावा आयुर्वेद में की गयी है। सिंघारा में कार्बोहाईड्रेड की मात्रा अधिक होती है और 100 ग्राम खाने के साथ ही शरीर को 115 कैलोरी मिलती है।
मखाना एवं धान की खेती से वंचित जमीन में आसानी से होगी खेती-
अप्रैल एवं मई महीने में बहुत-सी जमीन पानी के अभाव में मखाना एवं धान की खेती से वंचित रह जाती है। वैसे जमीन में जुलाई से नवंबर तक पानी भरा रहता है। जिसमें व्यापक पैमाने पर सिंघारा की खेती कर किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं और पानी फल सिंघारा की डिमांड भी कम नहीं है। साउथ बिहार में नेचूरल फार्मिंग खुब होती है। नेचूरल कंडीशन में सिंघारा की खेती आसानी से होगी। इसमें बहुत उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती है।
-बिमलेश पाण्डेय, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र, अगवानपुर, सहरसा।
जलीय कृषि की आपार संभावनाए हैं-
जलीय कृषि की अापार संभावनाएं है। जल-जमाव वाले जमीन में कम लागत में सिंघारा की अच्छी खेती किया जा सकता है। सिंघारा को भी योजना में शामिल किया जाना चाहिए।
-संतोष कुमार सुमन, जिला उद्यान पदाधिकारी, सहरसा