अमानवीय जुल्म का गवाह बनी मैला आंचल की धरती
ऽ राजनीतिक दलों की भूमिका मैला आंचल के विष्वनाथ की तरह
ऽ घटना के सूत्रधार बलिया की नहीं हो रही है तलाष
अमर कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की धरती मैला आंचल भजनपुर गोली कांड जैसी अमानवीय जुल्म का गवाह बनेगी ऐसा कभी किसी ने सोचा भी नहीं था.एक अदद सड़क के लिए चार-चार लाशें पुलिस की गोली से बिछ जाएगी यह अकल्पनीय है.मैला आंचल की पंक्ति यद्यपि 1942 के जन आंदोलन के समय इस गांव में न तो फौजियों का काई उत्पात हुआ था और न आंदोलन के समय इस गांव तक पहूंची थी. मगर सुशासन की पुलिस ने 3 जून 11 को फारबिसगंज शहर स्थित भजनपुर गांव के निहत्थों पर गोली चलाकर न सिर्फ उसे झुठलाया बल्कि मैला आंचल को और भी दागदार बना दिया. जबकि मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया और लोबिनलाल के कुंएं से बाल्टी खोलकर ले गये हैं. को भी पीछे छोड़ दिया. मैला आंचल की दुसरी पंक्ति यह सब गुअर टोली के बलिया की बदौलत हो रहा है. ठीक भजनपुर की घटना में भी गुअर टोली के बलिया की ही करतूत है. लेकिन सबसे ताज्जुब की बात तो ये है कि पुलिस के साथ-साथ राज्य के उच्चाधिकारी भी भजनपुर कांड के उस बलिया को ढूंढ पाने की ईमानदार कोशिश अब तक नहीं की गयी है. राजनीतिक दलों के लोग मैंला आंचल के पात्र तहसील विश्वनाथ प्रसाद बनकर भजनपुरवासियों की मरहम पट्टी कर रहे हैं या उस गुअर टोली के बलिया. यह बात समझ से पड़े लग रही है. इस मामले में पत्रकारों का हाल भी उस बिरंची से कम नहीं है.फारबिसगंज शहर से सटे बियाडा औद्योगिक परिक्षेत्र सिथत तरल ग्लूकोज व स्टार्च फैक्टरी औरो सुन्दरम इंटरनेशनल प्रा.लि.के द्वारा एक मामूली-सी जनोपयोगी सड़क की विवाद को लेकर जो कृत्य किया है वह मानवीयता के साथ घोर कलंक है. प्रशासन की भूमिका सरकार तुम्हारी तो साथ भी तुम्हारा की तरह स्पष्ट दिख रही है. ग्रामीणों को भी धैर्य के साथ काम लेना चाहिए था किसी के बहकावे में आकर पूंजीपति का तो कुछ बिगाड़ नहीं सके बल्कि खुद के जान का न्योछावर अवश्यक हो गया. इस घटना को लोगों को जात-पात धर्म-मजहब से उपठकर न्याय दिलाने की दिशा में सतत प्रयास करना चाहिए.जो नहीं हो पा रही है. राजनीतीक रोटी सेकने वालों की तायदाद निरंतर बढती ही जा रही है. लेकिन भजनपुर गांव के पीडि़त ग्रामीणों के बीच शायद ही कोई ऐसा दाता होगा जिन्होंने एक किलो आटा भी पहूंचाया होगा. बस,यह तो अपनी अभिव्यक्ति है...
ऽ राजनीतिक दलों की भूमिका मैला आंचल के विष्वनाथ की तरह
ऽ घटना के सूत्रधार बलिया की नहीं हो रही है तलाष
अमर कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की धरती मैला आंचल भजनपुर गोली कांड जैसी अमानवीय जुल्म का गवाह बनेगी ऐसा कभी किसी ने सोचा भी नहीं था.एक अदद सड़क के लिए चार-चार लाशें पुलिस की गोली से बिछ जाएगी यह अकल्पनीय है.मैला आंचल की पंक्ति यद्यपि 1942 के जन आंदोलन के समय इस गांव में न तो फौजियों का काई उत्पात हुआ था और न आंदोलन के समय इस गांव तक पहूंची थी. मगर सुशासन की पुलिस ने 3 जून 11 को फारबिसगंज शहर स्थित भजनपुर गांव के निहत्थों पर गोली चलाकर न सिर्फ उसे झुठलाया बल्कि मैला आंचल को और भी दागदार बना दिया. जबकि मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया और लोबिनलाल के कुंएं से बाल्टी खोलकर ले गये हैं. को भी पीछे छोड़ दिया. मैला आंचल की दुसरी पंक्ति यह सब गुअर टोली के बलिया की बदौलत हो रहा है. ठीक भजनपुर की घटना में भी गुअर टोली के बलिया की ही करतूत है. लेकिन सबसे ताज्जुब की बात तो ये है कि पुलिस के साथ-साथ राज्य के उच्चाधिकारी भी भजनपुर कांड के उस बलिया को ढूंढ पाने की ईमानदार कोशिश अब तक नहीं की गयी है. राजनीतिक दलों के लोग मैंला आंचल के पात्र तहसील विश्वनाथ प्रसाद बनकर भजनपुरवासियों की मरहम पट्टी कर रहे हैं या उस गुअर टोली के बलिया. यह बात समझ से पड़े लग रही है. इस मामले में पत्रकारों का हाल भी उस बिरंची से कम नहीं है.फारबिसगंज शहर से सटे बियाडा औद्योगिक परिक्षेत्र सिथत तरल ग्लूकोज व स्टार्च फैक्टरी औरो सुन्दरम इंटरनेशनल प्रा.लि.के द्वारा एक मामूली-सी जनोपयोगी सड़क की विवाद को लेकर जो कृत्य किया है वह मानवीयता के साथ घोर कलंक है. प्रशासन की भूमिका सरकार तुम्हारी तो साथ भी तुम्हारा की तरह स्पष्ट दिख रही है. ग्रामीणों को भी धैर्य के साथ काम लेना चाहिए था किसी के बहकावे में आकर पूंजीपति का तो कुछ बिगाड़ नहीं सके बल्कि खुद के जान का न्योछावर अवश्यक हो गया. इस घटना को लोगों को जात-पात धर्म-मजहब से उपठकर न्याय दिलाने की दिशा में सतत प्रयास करना चाहिए.जो नहीं हो पा रही है. राजनीतीक रोटी सेकने वालों की तायदाद निरंतर बढती ही जा रही है. लेकिन भजनपुर गांव के पीडि़त ग्रामीणों के बीच शायद ही कोई ऐसा दाता होगा जिन्होंने एक किलो आटा भी पहूंचाया होगा. बस,यह तो अपनी अभिव्यक्ति है...
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