Monday, March 13, 2017

कोसी क्षेत्र से फिल्म ‘अनारकली ऑफ आरा’ का है गहरा ताल्लुक

कोसी क्षेत्र से फिल्म अनारकली ऑफ आराका है गहरा ताल्लुक

पत्रकारिता के संघर्ष के दिनों में कहिए या मैथिली की कथा गोष्ठी के खातिर अपने अभिन्न मित्र पत्रकार निर्भय झा व युवा समाजकर्मी भगवानजी पाठक के साथ अक्सर वे सहरसा आते रहे हैं। सुपौल के डॉ. शिवेन्द्र दास, केदार कानन एवं सहरसा में स्व.महाप्रकाश व शैलेन्द्र शैली से वे जरूर मिलते थे। कोसी की माटी-पानी से पत्रकार अविनाश को भावनात्मक रिश्ता भी है...

संजय सोनी/सहरसा।
अपनी प्रदर्शन से पूर्व ही कथा, अभिनय व गानों को लेकर चर्चित भोजपुरी फिल्म अनारकली ऑफ आराका गहरा ताल्लुक कोसी क्षेत्र के सहरसा, सुपौल एवं मधेपुरा से भी है। यह फिल्म 24 मार्च को देश स्तर पर प्रदर्शित होने जा रही है। भोजपुरी फिल्म अनारकली ऑफ आराके लेखक व निर्देक एवं बाबा नागार्जन के परम शिष्य अविनाश दास के मित्रों का एक बड़ा कुनबा कोसी क्षेत्र भी रहा है। यही वजह है कि भोजपुरी फिल्म अनारकली ऑफ आराके प्रदर्शन का इंतजार कोसीवासियों को बेशब्री से है।
मुलतः मिथिलांचल की राजधानी दरभंगा निवासी अविनाश दास पत्रकारिता के संघर्ष के दिनों में कहिए या मैथिली की कथा गोष्ठी के खातिर अपने अभिन्न मित्र पत्रकार निर्भय झा व युवा समाजकर्मी भगवानजी पाठक के साथ अक्सर वे सहरसा आते रहे हैं। सुपौल के डॉ. शिवेन्द्र दास, केदार कानन एवं सहरसा में स्व.महाप्रकाश व शैलेन्द्र शैली से वे जरूर मिलते थे। वे प्रभात खबर के लिए लौटकर अविनाश कोसी क्षेत्र की संस्कृति व विभिन्न समस्याओं एवं बाढ व विस्थापन, पलायन जैसे खास रिर्पोटिंग के लिए ही प्रमुख रूप से आते थे। कोसी की माटी-पानी से पत्रकार अविनाश को भावनात्मक रिश्ता भी है। यूं कहा जाय कि सुपौल जिले के कर्णपुर स्थित भाई निर्भय का घर उनका अपना घर हुआ करता था। निर्भय से अविनाश का पारिवारिक संबंध रहा है। इसलिए पत्रकारिता जगत से फिल्म की दुनिया में कदम रखने वाले अविनाश दास की पहली भोजपुरी फिल्म अनारकली ऑफ आरा’ 24 मार्च 2017 को रीलिज होगी तो इन क्षेत्रों के सिनेमा घरों में भी खुब चलेगी। फिल्म अनारकली ऑफ आराके लेखक व निर्देशक अविनाश के लिए बिहार एवं बिहार के अन्य जिलों समेत कोसी प्रमंडल के सहरसा, सुपौल एवं मधेपुरा के लिए परिचय की जरूरत नहीं है। कोसी तटबंध के अंदर के गांवों का नाम आज भी उनकी जुबान पर आसानी से आ जाती है। कोसी की देशी मछली के स्वाद के वे काफी शौकीन हैं।
मशहूर अभिनेत्री स्वरा भास्कर की बेहद खास फिल्म
बॉलीवुड में अपने संजीदा अभिनय के लिये मशहूर स्वरा भास्कर अपनी आने वाली फिल्म अनारकली ऑफ आराको खास फिल्म मानती है। पत्रकारिता की दुनिया से फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने वाले अविनाश दास निर्देशित फिल्म अनारकली ऑफ आरा’ 24 मार्च को प्रदर्शित हो रही है। फिल्म में स्वरा भास्कर, संजय मिश्रा, पंकज त्रिपाठी एवं इश्तियाक खान की महत्वपूर्ण भूमिका हैं। फिल्म की कहानी भी अविनाश दास ने लिखी है। रांझना, तनु वेडस मनु, तनु वेडस मनु रिटर्नस, प्रेम रतन धन पायो और निल बटे सन्नाटा में अपनी अदायगी का लोहा मनवा चुकी स्वरा भास्कर फिल्म अनारकली ऑफ आराको बेहद खास मानती है।
फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा का पहला गाना 
यह रहा हमारी फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा का पहला गाना। दिलों से खेलते हो या कि कोई जंग करते हो- दुनाली लेके सरकारी हमें क्यों तंग करते हो। रामकुमार सिंह के शब्द हैं और इसे सुरों में सजाया है रोहित शर्मा ने। आवाज़ है स्वाति शर्मा की। कोरियोग्राफी है शबीना खान की। दृश्यों में अभिनेताओं का उत्साह आप देख ही रहे हैं। निर्देशक ने भी इस गाना को सुनने व सुनाने के लिए सभी को शेयर करने को कहा है। मतलब दिल की धड़कन तेज है और फिल्म रीलिज होने के साथ ही इस गाने को लोकप्रिय होने से कोई नहीं रोक सकता। 

फेसबुक की टाईम लाईन पर अविनाश की बात   


स्कूल में थे, तो कविता लिखने का शौक चढ़ा। मेरा सहपाठी था विनय भरत। हमदोनों स्कूल की छुट्टी के बाद अपनी कविताएं बस्ते में लेकर साइकिल से प्रभात खबर के दफ्तर (कोकर इंडस्ट्रियल एरिया,रांची) जाते थे। तब दरबान रोकता नहीं था। हम हरिवंश जी से मिलते थे, जो प्रभात खबर के प्रधान संपादक थे। आज वो राज्यसभा सांसद हैं। आपको कुछ कुछ याद होगा घनश्याम भैया, क्योंकि हमदोनों को सदेह आपके पास ही फारवार्ड कर दिया जाता था। उन्हीं दिनों श्रीनिवास जी, से भी दोस्ती हो गयी थी। उन्हीं दिनों कार्टून बनाते हुए मनोज भैया, भी मिल जाते थे। बाद में मैं दरभंगा होते हुए पटना आ गया। सात अप्रैल 96 से प्रभात खबर का पटना संस्करण छपना शुरू हुआ। मेरे कुछ परिचित उसमें लग गये। मैं चूंकि बहुत कच्चा था, तो मैंने कोशिश ही नहीं की। लेकिन अप्रैल बीतते बीतते रहा नहीं गया और मैं एसपी वर्मा रोड में समृद्धि अपार्टमेंट के छठे माले पर सीढ़ियां चढ़ते हुए पहुंच गया। वहीं प्रभात खबर का आॅफिस था। दरबान को मैंने हरिवंश जी के नाम एक परची पकड़ायी, ये लिख कर कि आदरणीय हरिवंश जी, आपको याद हो न हो, स्कूल के दिनों में एक लड़का अपनी कविताएं लेकर आपसे मिला करता था। हरिवंश जी दरवाजे पर आकर मुझे अपने केबिन में ले गये। खूब सारी बातें की। कहा कि प्रभात खबर से जुड़ जाओ-पत्रकारिता सीखो। तो दो मई 96 को मैंने प्रभात खबर ज्वाइन किया और फिर यही अखबार पत्रकारिता की मेरी पाठशाला बन गया। 

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