हमला
चाहे जैसा हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा, नहीं उठेगा
कष्ट
चाहे जितनी हो, विचार हमारी नहीं मरेगी, आह हम नहीं भरेंगे...
हां, चंदेश्वर ने उन शख्सियतों से इतना कुछ जरूर सीखा कि तहेदिल से कहता है
कि आज भी गांधी, जयप्रकाश व बिनोबा के नाम पर कोई
कार्यक्रम होता है तो अपने तनख्वाह से 500-1000 अधिक
की राशि सहयोग करने की ताकत रखता हूं...
संजय
सोनी/सहरसा: लोकनायक
जयप्रकाश नारायण, बिनोवा भावे, शिवराज ढढा, दादा
धर्माधिकारी, ठाकुर दास बंग, आचार्य राममूर्ति शरीखे
लोगों के खिदमतगार रहे चंदेश्वर आज भी वैचारिक रूप से जितना मजबूत है आर्थिक रूप
से उतना ही कमजोर पड़ गया है। आप सबों को लगता होगा कि आखिर ये कौन है चंदेश्वर?
70
वर्षीय वृद्ध चंदेश्वर महतो राजधानी पटना के कदमकुंआ क्षेत्र के कांग्रेस मैदान
अवस्थित “बिहार स्टेट गांधी स्मारक निधि” पटना के आर्डरली पद पर कार्यरत और गया
जिले के अतरी थाना क्षेत्र के गांव शेवतर का रहने वाला है। संस्था की तरफ से आज भी
तनख्वा के रूप में महज 3 हजार रूपये ही किसी तरह मिलता है। जब चंदेश्वर 1962 में संस्था ज्वाईन किया
था तो उस वक्त भी मात्र 40 रूपये महीना ही पगार के तौर पर दिया जाता था। श्री चंदेश्वर संस्था
में पेट भरने नहीं बल्कि परिवर्तन की वैचारिक क्रांति से अभिभूत होकर इस लालच में
कि कम से कम लोकनायक जयप्रकाश नारायण, बिनोवा भावे, शिवराज ढढा, दादा
धर्माधिकारी, ठाकुर दास बंग, आचार्य राममूर्ति जैसे शख्सियतों से तो कुछ तो सीखने
को मिलेगा। हां, चंदेश्वर ने उन शख्सियतों से इतना कुछ जरूर सीखा कि तहेदिल से
कहता है कि आज भी गांधी, जयप्रकाश व बिनोबा के नाम पर कोई कार्यक्रम होता है तो
अपने तनख्वाह से 500-1000 अधिक की राशि सहयोग करने की ताकत रखता
हूं। उन्होंने एक जबर्दश्त बात यह कही कि मुझे अब तक समझ में नहीं आया कि आखिर
सर्वोदय किसे कहते हैं। मेरी समझ में सर्वोदय कर मतलब सबों का उदय। लेकिन यहां तो
सिर्फ व्यक्ति का ही उदय होता रहा है। उन्होंने कहा की आज भी सबों का एकसाथ उदय
चाहने वाले व्यक्ति की जरुरत है। उन्होंने लोकनायक के साथ अपनी सेवा क्षण को याद
करते हुए बोला कि जब जेपी सख्त बीमार थे तो मुझे शरीर दबाने का दायित्व सौंपा गया
और बोला गया की जब गहरी नींद आ जाय तो छोड़ देना। लेकिन ऐसा मौका आते ही खुद कराह
कर बोलते थे कि जरा इधर। जब उनकी इस कष्ट को मैने शरीर दबाकर महसूस किया तो औरों
से कहा कि मुझे नदी में पानी डंगाने का काम मंजूर है पर, जेपी का कष्ट देखना मंजूर
नहीं है। उनकी व्यथा देखकर मुझे लगा कि ईश्वर को इन्हें अब धरती पर नहीं रखना
चाहिए। लेकिन सत्तालोपियों का कुनबा सिर्फ यही चाहते रहे कि जेपी बीमार हालत में
भी रहे तो मेरा काम बन जाएगा। कहने का मतलब श्री चंदेश्वर ने स्पष्ट कहा कि जेपी
के विचारों का सौदा करने वाले उस वक्त भी थे और आज भी है। तो भला इस गांधी स्मार
निधि व उसके कर्मचारियों को कौन देखने वाला है।
वे
यह भी बोलते हैं कि 1974 के आंदोलन में “बिहार स्टेट गांधी स्मारक निधि” छात्र युवा
संघर्ष वाहिनी का मुख्य केन्द्र रहा है और यहां उन सबों के आलावा अमरनाथ भाई, कर्पूरी
ठाकुर, नीतीश कुमार, लालू यादव, रामबलिास
पासवान, सुशील कुमार मोदी, बिनोदा नंद झा, शिवानंद तिवारी जैसे
लोगों का यह संस्था एक तरह से प्रशिक्षण केन्द्र रहा है। फिर भी इस संस्थान की
खराब हालत पर कोई ध्यान नहीं देता है। उन्होंने कहा कि इमेरजेंसी में इस संस्थान
में पंछी तक रहना पसंद नहीं करता था तो भी चंदेश्वर ही रहा करता था। श्री चंदेश्वर
ने बोला कि “हमला चाहे जैसा हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा,
नहीं
उठेगा और अब भी कष्ट चाहे जितनी हो, विचार हमारी नहीं मरेगी, आह हम नहीं भरेंगे...।
तो आज भी हम उसी मूलमंत्र को आत्मसात कर गांधी स्मारक निधि में सेवारत हैं।
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