चैनपुर पंचायत में वर्ष 1915 में स्थापित पाठशाला
चैनपुर पंचायत में वर्ष 1915 में स्थापित इस पाठशाला में बच्चों को वैदिक शिक्षा की प्रमुख शिक्षण संस्थान सरकारी सुविधा से वंचित, बच्चों को यहां यजुर्वेद का प्रमुख अंग रूद्राष्टाध्यायी की दी जाती है शिक्षा
बाल्यकाल से ही यजुर्वेद की शिक्षा प्रदान करने वाली कोसी क्षेत्र की एक मात्र प्राचीन संस्कृत शिक्षा पद्धति पर आधारित टोल संस्कृत पाठशाला आज भी सरकारी सुविधा से वंचित है। जिले के कहरा प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत चैनपुर पंचायत अवस्थित वर्ष 1915 में स्थापित इस पाठशाला में बच्चों को यजुर्वेद का प्रमुख अंग रूद्राष्टाध्यायी का न केवल पाठ कराया जाता है बल्कि दो साल के अंदर बच्चों को आवासीय शिक्षण व प्रशिक्षण देकर कंठस्थ करा दिया जाता है। इस शिक्षा को ग्रहण करने वाले छात्र वैदिक रीति-रिवाज से पूजा-पाठ को दक्षता प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन आधुनिक शिक्षा पद्धति के समक्ष इस प्राचीन संस्कृत शिक्षा पद्धति पर आधारित विद्यालय के विकास की तरफ किसी का ध्यान नहीं है।
जिले के कहरा प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत चैनपुर पंचायत के पूबारी टोल के वार्ड सं. 4 अवस्थित श्री भागीरथ प्राथमिक सह माध्यमिक संस्कृत पाठशाला प्राचीनकाल में टोल संस्कृत पाठशाला के नाम से प्रचलित थी। इसके बाद वर्ष 1941 में जब यहां संस्कृत के साथ अन्य विषयों की शिक्षा दी जाने लगी तो भागीरथ संस्कृत प्राथमिक विद्यालय और फिर 1972 में पूरी तरह से आधुनिक शिक्षा पद्धति को अपना लिया ता यह श्री भागीरथ प्राथमिक सह माध्यमिक संस्कृत पाठशाला के रूप में मान्यता प्राप्त कर ली। इस विद्यालय में छोटे-छोटे बच्चों को आवासीय शिक्षण के तहत शास्त्रीय व उपशास्त्रीय के आलावा लघु सिद्धांत कौमुदी, रूद्राष्टाध्यायी, मूल रामायाणम् एवं रघुवंश रूचि सर्वग जैसे महत्वपूर्ण विषयों की पढाई होती है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण व जीवनोपयोगी विषय रूद्राष्टाध्यायी है। रूद्राष्टाध्यायी में अभिषेक विधि एवं पूजा विधान की विस्तार से वर्णन है। इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक उमेश कुमार झा ने कहा कि रुद्राष्टाध्यायी यजुर्वेद का प्रमुख अंग है और वेदों को ही सर्वोत्तम ग्रंथ बताया गया है। यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में वेदों का इतना महत्व है व इनके ही श्लोकों, सूक्तों से पूजा, यज्ञ, अभिषेक आदि किया जाता है। उन्होंने कहा कि सरकारी सुविधा नहीं मिलने की वजह से विद्यालय विकास बाधित है।
इस विद्यालय के विभिन्न कक्षाओं में कुल 150 बच्चे जहां नामांकित हैं वहीं 14 बच्चे आवासीय शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। आवासीय शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र ही मूल रूप से रूद्राष्टाध्यायी का अध्ययन करते हैं और जीवनोपयोगी बना रहे हैं। इस विद्यालय को भवन का घोर अभाव है। इस वजह से नामांकित बच्चों की दैनिक उपस्थिति भी कमजोर पड़ जाती है। इस विद्यालय में प्रधानाध्यापक उमेश कुमार झा सहित कुल 9 शिक्षक पदस्थापित हैं और इनमें कोई व्याकरणाचार्य, साहित्याचार्य तो कोई वेदाचार्य हैं। पढाई की गुणवत्ता वेदों की पढाई कर रहे बच्चों की प्रतिभा से ही प्रलक्षित हो जाती है।
चैनपुर पंचायत में वर्ष 1915 में स्थापित इस पाठशाला में बच्चों को वैदिक शिक्षा की प्रमुख शिक्षण संस्थान सरकारी सुविधा से वंचित, बच्चों को यहां यजुर्वेद का प्रमुख अंग रूद्राष्टाध्यायी की दी जाती है शिक्षा
बाल्यकाल से ही यजुर्वेद की शिक्षा प्रदान करने वाली कोसी क्षेत्र की एक मात्र प्राचीन संस्कृत शिक्षा पद्धति पर आधारित टोल संस्कृत पाठशाला आज भी सरकारी सुविधा से वंचित है। जिले के कहरा प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत चैनपुर पंचायत अवस्थित वर्ष 1915 में स्थापित इस पाठशाला में बच्चों को यजुर्वेद का प्रमुख अंग रूद्राष्टाध्यायी का न केवल पाठ कराया जाता है बल्कि दो साल के अंदर बच्चों को आवासीय शिक्षण व प्रशिक्षण देकर कंठस्थ करा दिया जाता है। इस शिक्षा को ग्रहण करने वाले छात्र वैदिक रीति-रिवाज से पूजा-पाठ को दक्षता प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन आधुनिक शिक्षा पद्धति के समक्ष इस प्राचीन संस्कृत शिक्षा पद्धति पर आधारित विद्यालय के विकास की तरफ किसी का ध्यान नहीं है।
जिले के कहरा प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत चैनपुर पंचायत के पूबारी टोल के वार्ड सं. 4 अवस्थित श्री भागीरथ प्राथमिक सह माध्यमिक संस्कृत पाठशाला प्राचीनकाल में टोल संस्कृत पाठशाला के नाम से प्रचलित थी। इसके बाद वर्ष 1941 में जब यहां संस्कृत के साथ अन्य विषयों की शिक्षा दी जाने लगी तो भागीरथ संस्कृत प्राथमिक विद्यालय और फिर 1972 में पूरी तरह से आधुनिक शिक्षा पद्धति को अपना लिया ता यह श्री भागीरथ प्राथमिक सह माध्यमिक संस्कृत पाठशाला के रूप में मान्यता प्राप्त कर ली। इस विद्यालय में छोटे-छोटे बच्चों को आवासीय शिक्षण के तहत शास्त्रीय व उपशास्त्रीय के आलावा लघु सिद्धांत कौमुदी, रूद्राष्टाध्यायी, मूल रामायाणम् एवं रघुवंश रूचि सर्वग जैसे महत्वपूर्ण विषयों की पढाई होती है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण व जीवनोपयोगी विषय रूद्राष्टाध्यायी है। रूद्राष्टाध्यायी में अभिषेक विधि एवं पूजा विधान की विस्तार से वर्णन है। इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक उमेश कुमार झा ने कहा कि रुद्राष्टाध्यायी यजुर्वेद का प्रमुख अंग है और वेदों को ही सर्वोत्तम ग्रंथ बताया गया है। यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में वेदों का इतना महत्व है व इनके ही श्लोकों, सूक्तों से पूजा, यज्ञ, अभिषेक आदि किया जाता है। उन्होंने कहा कि सरकारी सुविधा नहीं मिलने की वजह से विद्यालय विकास बाधित है।
इस विद्यालय के विभिन्न कक्षाओं में कुल 150 बच्चे जहां नामांकित हैं वहीं 14 बच्चे आवासीय शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। आवासीय शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र ही मूल रूप से रूद्राष्टाध्यायी का अध्ययन करते हैं और जीवनोपयोगी बना रहे हैं। इस विद्यालय को भवन का घोर अभाव है। इस वजह से नामांकित बच्चों की दैनिक उपस्थिति भी कमजोर पड़ जाती है। इस विद्यालय में प्रधानाध्यापक उमेश कुमार झा सहित कुल 9 शिक्षक पदस्थापित हैं और इनमें कोई व्याकरणाचार्य, साहित्याचार्य तो कोई वेदाचार्य हैं। पढाई की गुणवत्ता वेदों की पढाई कर रहे बच्चों की प्रतिभा से ही प्रलक्षित हो जाती है।
No comments:
Post a Comment